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________________ बोधपाहुड मदः रागः द्वेष:मोहः क्रोध:लोभ: च यस्य आयत्ताः। पंचमहाव्रतधारी आयतनं महर्षयो भणिताः ।।६।। अर्थ – जिस मुनि के मद, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ और चकार से माया आदि ये सब 'आयत्ता' अर्थात् निग्रह को प्राप्त हो गये और पाँच महाव्रत जो अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य तथा परिग्रह का त्याग, उनके धारी हो ऐसा महामुनि ऋषीश्वर 'आयतन' कहा है। भावार्थ - पहिली गाथा में तो बाह्य का स्वरूप कहा था। यहाँ बाह्य-आभ्यन्तर दोनों प्रकार से संयमी हो वह 'आयतन' है, इसप्रकार जानना चाहिए ।।६।। आगे फिर कहते हैं - सिद्धं जस्स सदत्थं विसुद्धझाणस्स णाणजुत्तस्स। सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवरवसहस्स मुणिदत्थं ।।७।। सिद्धं यस्य संदर्थं विसुद्धध्यानस्य ज्ञानयुक्तस्य । सिद्धायतनं सिद्धं मुनिवृषभस्य मुनितार्थम् ।।७।। अर्थ - जिस मुनि के सदर्थ अर्थात् समीचीन अर्थ जो 'शुद्ध आत्मा' सो सिद्ध हो गया हो वह सिद्धायतन है। कैसा है मुनि ? जिसके विशुद्ध ध्यान है, धर्मध्यान को साधकर शुक्लध्यान को प्राप्त हो गया है; ज्ञानसहित है, केवलज्ञान को प्राप्त हो गया है। घातिकर्मरूप मल से रहित है, इसीलिए मुनियों में 'वृषभ' अर्थात् प्रधान है, जिसने समस्त पदार्थ जान लिये हैं। इसप्रकार मुनिप्रधान को 'सिद्धायतन' कहते हैं। भावार्थ - इसप्रकार तीन गाथा में 'आयतन' का स्वरूप कहा। पहिली गाथा में तो संयमी सामान्य का बाह्यरूप प्रधानता से कहा । दूसरी में अंतरंग-बाह्य दोनों की शुद्धतारूप ऋद्धिधारी मुनि ऋषीश्वर कहा और इस तीसरी गाथा में केवलज्ञानी को जो मुनियों में प्रधान है सिद्धायतन कहा है। यहाँ इसप्रकार जानना जो ‘आयतन' अर्थात् जिसमें बसे, निवास करे उसको आयतन कहा है, इसलिए धर्मपद्धति में जो धर्मात्मा पुरुष के आश्रय करने योग्य हो वह 'धर्मायतन' है। इसप्रकार मुनि ही धर्म के आयतन हैं, अन्य कोई भेषधारी, पाखंडी (ढोंगी) विषय-कषायों में आसक्त, परिग्रहधारी धर्म के आयतन नहीं हैं तथा जैनमत में भी जो सूत्रविरुद्ध प्रवर्तते हैं, वे भी आयतन नहीं, वे सब ‘अनायतन' हैं। बौद्धमत में पाँच इन्द्रिय, उनके पाँच विषय, एक मन, एक धर्मायतन शरीर ऐसे बारह आयतन कहे हैं वे भी कल्पित हैं, इसलिए जैसा यहाँ आयतन कहा वैसा ही जानना, धर्मात्मा को उसी का जो शुक्लध्यानी और केवलज्ञान से संयुक्त हैं। अर जिन्हें आतम सिद्ध है वे मुनिवृषभ सिद्धायतन ।।७।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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