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________________ ७५ चारित्रपाहुड भी होते हैं, इसलिए दर्शन प्रतिमा का धारक भी अणुव्रती ही है, इसका नाम दर्शन ही कहा । यहाँ इसप्रकार जानना कि इसके केवल सम्यक्त्व ही होता है और अव्रती है, अणुव्रत नहीं है इसके अणुव्रत अतिचार सहित होते हैं इसलिए व्रती नाम नहीं कहा। दूसरी प्रतिमा में अणुव्रत अतिचार रहित पालता है इसलिए व्रत नाम कहा है. यहाँ सम्यक्त्व के अतिचार टालता है, सम्यक्त्व ही प्रधान है, इसलिए दर्शनप्रतिमा नाम है। अन्य ग्रन्थों में इसका स्वरूप इसप्रकार कहा है कि जो आठ मूलगुण का पालन करे, सात व्यसन को त्यागे, जिसके सम्यक्त्व अतिचार रहित शुद्ध हो वह दर्शन प्रतिमा का धारक है। पाँच उदम्बरफल और मद्य, मांस, मधु इन आठों का त्याग करना, वह आठ मूलगुण हैं। अथवा किसी ग्रन्थ में इसप्रकार कहा है कि पाँच अणुव्रत पाले और मद्य, मांस, मधु का त्याग करे वह आठ मूलगुण हैं, परन्तु इसमें विरोध नहीं है, विवक्षा का भेद है। पाँच उदुम्बर फल और तीन मकार का त्याग कहने से जिन वस्तुओं में साक्षात् त्रस जीव दिखते हों उन सब ही वस्तुओं का भक्षण नहीं करे। देवादिक के निमित्त तथा औषधादि निमित्त इत्यादि कारणों से दिखते हुए त्रसजीवों का घात न करे, ऐसा आशय है जो इसमें तो अहिंसाणुव्रत आया। सात व्यसनों के त्याग में झूठ, चोरी और परस्त्री का त्याग आया, अन्य व्यसनों के त्याग में अन्याय, परधन, परस्त्री का ग्रहण नहीं है; इसमें अतिलोभ के त्याग से परिग्रह का घटाना आया, इसप्रकार पाँच अणुव्रत आते हैं। इनके (व्रतादि प्रतिमा के) अतिचार नहीं टलते हैं इसलिए अणुव्रती नाम प्राप्त नहीं करता (फिर भी) इसप्रकार से दर्शन प्रतिमा का धारक भी अणुव्रती है, इसलिए देशविरत सागारसंयमचरण चारित्र में इसको भी गिना है ।।२३।। आगे पाँच अणुव्रतों का स्वरूप कहते हैं - थूले तसकायवहे थूले मोषे अदत्तथूले य। परिहारो परमहिला परिग्गहाररंभपरिमाणं ।।२४।। स्थूले त्रसकायवधे स्थूलायां मृषायां अदत्तस्थूले च । परिहारः परमहिलायां परिग्रहारंभपरिमाणम् ।।२४।। अर्थ - थूल त्रसकाय का घात, थूलमृषा अर्थात् असत्य, थूल अदत्ता अर्थात् पर का बिना १. 'अदत्तथूले' के स्थान में सं. छाया में 'तितिक्ख थूले', 'परमहिला' के स्थान में ‘परमपिम्मे' ऐसा पाठ है। त्रसकायवध अर मृषा चोरी तजे जो स्थूल ही। परनारि का हो त्याग अर परिमाण परिग्रह का करे ।।२४।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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