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________________ अष्टपाहुड धर्म की प्रभावना की। ऐसे आठ अंग प्रगट होने पर सम्यक्त्वाचरण चारित्र होता है, जैसे शरीर में हाथ-पैर होते हैं, वैसे ही ये सम्यक्त्व के अंग हैं, ये न हों तो विकलांग होता है ।।७।। आगे कहते हैं कि इसप्रकार पहिला सम्यक्त्वाचरण चारित्र होता है - तं चेव गुणविसुद्धं जिणसम्मत्तं सुमुक्खठाणाए। जं चरइ णाणजुत्तं पढमं सम्मत्तचरणचारित्तं ।।८।। तच्चैव गुणविशुद्धं जिनसम्यक्त्वं सुमोक्षस्थानाय । तत् चरति ज्ञानयुक्तंप्रथमं सम्यक्त्वचरणचारित्रम् ।।८।। अर्थ - वह जिनसम्यक्त्व अर्थात् अरहंत जिनदेव की श्रद्धा नि:शंकित आदि गुणों से विशुद्ध हो उसका यथार्थ ज्ञान के साथ आचरण करे वह प्रथम सम्यक्त्वचरण चारित्र है, वह मोक्ष स्थान के लिए होता है। भावार्थ - सर्वज्ञभाषित तत्त्वार्थ की श्रद्धा निःशंकित आदि गुण सहित, पच्चीस मल दोष रहित, ज्ञानवान आचरण करे उसको सम्यक्त्वाचरण चारित्र कहते हैं। वह मोक्ष की प्राप्ति के लिए होता है, क्योंकि मोक्षमार्ग में पहिले सम्यग्दर्शन कहा है, इसलिए मोक्षमार्ग में प्रधान यह ही है।।८।। आगे कहते हैं कि जो इसप्रकार सम्यक्त्वाचरण चारित्र को अंगीकार करके संयमचरण चारित्र को अंगीकार करे तो शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त करता है - सम्मत्तचरणसुद्धा संजमचरणस्स जइ व सुपसिद्धा। णाणी अमूढदिट्ठी अचिरे पावंति णिव्वाणं ।।९।। सम्यक्त्वचरणशुद्धा: संयमचरणस्य यदिवासुप्रसिद्धाः। ज्ञानिन: अमूढदृष्टय: अचिरं प्राप्नुवंति निर्वाणम् ।।९।। अर्थ - जो ज्ञानी होते हुए अमूढदृष्टि होकर सम्यक्त्वाचरण चारित्र से शुद्ध होता है और जो संयमचरण चारित्र से सम्यक् प्रकार शुद्ध हो तो शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त होता है। इन आठ गुण से शुद्ध सम्यक् मूलत: शिवथान है। सद्ज्ञानयुत आचरण यह सम्यक्चरण चारित्र है।।८।। सम्यक्चरण से शुद्ध अर संयमचरण से शुद्ध हों। वे समकिती सदज्ञानिजन निर्वाण पावें शीघ्र ही।।९।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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