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________________ अहिंसा : महावीर की दृष्टि में आज तो सभी लड़ाइयाँ व्यापार के लिए ही लड़ी जाती हैं। एक देश दूसरे देश पर आक्रमण भी उस देश में अपना व्यापार स्थापित करने के लिए ही करता है। बड़े देश छोटे देशों को हथियार बेचने के लिए उन्हें आपस में भिड़ाते रहते हैं। इसप्रकार हम देखते हैं कि जगत में जितने भी युद्ध होते हैं, वे प्रायः जर, जोरू और जमीन के कारण ही होते हैं। अब मैं आपसे ही पूछता हूँ कि जर, जोरू और जमीन के कारण जो युद्ध होते हैं; वे जर, जोरू और जमीन के प्रति राग के कारण होते हैं या द्वेष के कारण? यह बात तो हाथ पर रखे आँवले के समान स्पष्ट है कि जर, जोरू और जमीन के प्रति राग के कारण ही युद्ध होते हैं, द्वेष के कारण नहीं। रामायण के युद्ध के सन्दर्भ में विचार करें तो श्री रामचन्द्रजी को तो महारानी सीता से अगाध स्नेह (राग) था ही, पर रावण को भी द्वेष नहीं था। यदि द्वेष होता तो वह सीताजी का हरण न करता, उन्हें घर न ले जाता, सभी प्रकार की सुविधाएँ प्रदान नहीं करता, स्वयं को स्वीकार कर लेने के लिए प्रार्थनाएँ न करता और इसप्रकार के प्रलोभन भी नहीं देता कि तुम मुझे स्वीकार कर लो, मैं तुम्हें पटरानी बनाऊँगा, मन्दोदरी से भी अधिक सम्मान दूंगा। यह सब उसके राग को ही सूचित करता है, द्वेष को नहीं। इसप्रकार की प्रवृत्ति राग का ही परिणाम हो सकती है, द्वेष का नहीं। यद्यपि यह सत्य है कि रावण का यह प्रेम वासनाजन्य परस्त्री-प्रेम होने से सर्वथा अनुचित है। पर है तो प्रेम ही, राग ही। अतः सहज ही सिद्ध है कि रामायण का युद्ध नारी के प्रति प्रेम के कारण ही हुआ था, नारी के प्रति राग के कारण ही हुआ था। इसीप्रकार कौरवों को तो जमीन से राग था ही, पर पाण्डवों को भी जमीन से राग ही था, द्वेष नहीं; अन्यथा वे पाँच गाँव भी क्यों माँगते? इस पर आप कह सकते हैं कि आप क्या बात करते हैं, वे बिचारे रहते कहाँ? पर मैं कहता हूँ कि रहने के लिए गाँवों की क्या आवश्यकता अहिंसा : महावीर की दृष्टि में है? मेरे पास तो एक इंच जमीन भी नहीं है, पर मैं तो बड़े आराम से रह रहा हूँ, उन्हें गाँवों की क्या आवश्यकता थी? वनवास के काल में भी तो वे बारह वर्ष तक बिना गाँवों के रहे थे, आखिर अब क्या आवश्यकता आ पड़ी थी, जो गाँव माँगने लगे और न मिलने पर युद्ध पर उतारू हो गये। पर भाईसाहब! सच्ची बात तो यह है कि उनके मन में भी राग था कि न सही चक्रवर्ती सम्राट, पाँच गाँव के जमींदार तो बन ही जायेंगे। इसप्रकार हम देखते हैं कि महाभारत की लड़ाई भी जमीन के प्रति राग के कारण ही लड़ी गई थी। पैसों के पीछे जो लड़ाइयाँ होती हैं, वे भी पैसों के प्रति राग के कारण ही होती हैं, द्वेष के कारण नहीं। ____अतः यह सहज ही सिद्ध हो जाता है कि युद्धों में होनेवाली सर्वाधिक द्रव्यहिंसा के मूल में राग ही कार्य करता है। यही कारण है कि भगवान महावीर ने रागादिभावों की उत्पत्ति को हिंसा कहा है और रागादिभावों की उत्पत्ति नहीं होने को अहिंसा घोषित किया है। ___ मात्र युद्धों में होनेवाली हिंसा ही नहीं, अपितु खान-पान एवं भोगविलास में होनेवाली हिंसा के मल में भी मुख्यरूप से राग ही कार्य करता है। मांसभक्षी लोग उसी प्राणी का मांस खाते हैं, जिसका मांस उन्हें अच्छा लगता है। प्रिय भोजन में प्राणियों का सहज अनुराग ही देखा जाता है, द्वेष नहीं। अभक्ष्य पदार्थों के भक्षण के मूल में भी लोलुपता अर्थात् राग ही कार्य करता है। लोग व्यर्थ ही कहते हैं कि बिल्ली को चूहे से जन्म-जात वैर है, पर यह कैसे संभव है? क्या किसी को अपनी प्रिय भोज्य सामग्री से भी वैर होता है? बिल्ली तो चूहे को बड़े चाव से खाती है। आप ही बताइये, क्या आपको शुद्ध, सात्त्विक, प्रिय आहार से द्वेष है, जो आप उसे चबाकर खा जाते हैं? भाई ! जिसप्रकार आप अपने योग्य शुद्ध, सात्त्विक, प्रिय खाद्य पदार्थों को प्रेम से खाते हैं; उसीप्रकार सभी प्राणी अपनी-अपनी भोज्यसामग्री का रागवश ही उपभोग करते हैं।
SR No.008337
Book TitleAhimsa Mahavira ki Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size106 KB
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