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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पार्श्वकुमार जन्म से ही प्रतिभाशाली और चमत्कृत बुद्धि-निधान अवधिज्ञान के धारक थे। वे अनेक सुलक्षणों के धनी, अतुल्य बल से युक्त, आकर्षक व्यक्तित्व वाले बालक थे। सुरेश - वे तो राजकुमार थे न ? उन्हें तो सब प्रकार की लौकिक सुविधायें प्राप्त रही होंगी? प्रध्यापक – इसमें क्या सन्देह! वे राजकुमार होने के साथ ही अतिशय पुण्य के धनी थे, देवादिक भी उनकी सेवा में उपस्थित रहते थे। यही कारण है कि उन्हें किसी प्रकार की सामग्री की कमी न थी, पर राज्यवैभव एवं पुण्य-सामग्री के लिए उनके हृदय में कोई स्थान न था, भोगों की लालसा उन्हें किंचित् भी न थी। वैभव की छाया में पलने पर भी जल में रहने वाले कमल के समान उससे अलिप्त ही थे। युवा होने पर उनके माता-पिता ने बहुत ही प्रयत्न किये, पर उन्हें विवाह करने को राजी न कर सके। वे बाल ब्रह्मचारी ही रहे। जिनेश – ऐसा क्यों ? अध्यापक – वे प्रात्मज्ञानी तो जन्म से थे ही, उनका मन सदा जगत से उदास रहता था। एक दिन एक ऐसी घटना घटी कि जिसने उनके हृदय को झकझोर दिया और वे दिगम्बर साधु होकर आत्मसाधना करने लगे। जिनेश – वह कौनसी उटना थी ? अध्यापक – एक दिन प्रातःकाल वे अपने साथियों के साथ घूमने जा रहे थे। रास्ते में वे देखते हैं कि उनके नाना साधु वेश में पंचाग्नि तप तप रहे हैं। जलती हुई लकड़ी के बीच एक नाग-नागिनी का जोड़ा था, वह भी जल रहा था। पार्श्वनाथ ने अपने दिव्यज्ञान (अवधिज्ञान) से यह सब जान लिया और उनको इस प्रकार के काम करने से मना किया, पर जब तक उस लकड़ी को फाड़कर नहीं देख लिया गया तब तक किसी ने उनका विश्वास नहीं किया। लकड़ी फाड़ते ही उसमें से अधजले नाग-नागिनी निकले। ४४ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008325
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1997
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size719 KB
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