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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates तथा तीव्र रागवश ऐसे कार्य करने के भावों द्वारा अपने चैतन्य प्राणों का घात करना, यह भावरूप से शिकार खेलना है। ६. परस्त्रीरमण करना अपनी धर्मानुकूल ब्याही हुई पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्रीयों के साथ रमण करना, द्रव्य - परस्त्रीरमण व्यसन है । - तत्त्व को समझने का यत्न न करके दूसरों की बुद्धि की परख में ही ज्ञान का सदुउपयोग भाव परस्त्रीरमण है। ७. चोरी करना - प्रमाद से बिना दी हुई किसी वस्तु को ग्रहण करना द्रव्य चोरी है। तथा प्रीतिभाव (मोहभाव ) से परवस्तु से साझेदारी की चाह करना (अपनी मानना ) ही भाव चोरी है । इन सातों व्यसनों को त्यागे बिना आत्मा को नहीं जाना जा सकता है। जिसे संसार के दुःखों से अरुचि हुई हो और प्रात्मस्वरूप प्राप्त कर सच्चा सुख प्राप्त करना हो, उसे सर्वप्रथम उक्त सात द्रव्य व्यसनों का त्याग अवश्य ही कर देना चाहिये; क्योंकि जब तक एक भी व्यसन रहेगा, सम्यग्दर्शन की प्राप्ति नहीं हो सकती । आत्मरुचि से आत्मस्वभाव की वृद्धि में आनंदित होने से भाव व्यसन सहज छूट जाते हैं। ये सातों व्यसन वर्तमान में भी प्रत्यक्षरूप से दुःखदाई जगत्-निन्द्य हैं। व्यसन सेवन करने वाले व्यसनी और दुराचारी कहलाते हैं । प्रश्न - १. कविवर पं. बनारसीदासजी के व्यक्तित्व व कर्तत्व पर प्रकाश डालिए । व्यसन किसे कहते है ? वे कितने होते हैं ? नाम सहित गिनाइये । २. ३. द्रव्य - जुना, भाव - मदिरापान, भाव- परस्त्री - रमण और द्रव्य - शिकार - व्यसन को स्पष्ट कीजिए । ४. निन्मलिखित पंक्तियों को स्पष्ट कीजिए : (क) “ देह की मगनताई, यहै मांस भखिबो। " (ख) “ प्यार सौं पराई सौंज गहिबे की चाह चोरी | " ३२ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008325
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1997
Total Pages51
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size719 KB
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