SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ४ पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ कविवर पं. बनारसीदास ( व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व) अध्यात्म और काव्य दोनों क्षेत्रों में सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्राप्त पण्डित बनारसीदास सत्रहवीं शताब्दी के रससिद्ध कवि और आत्मानुभवी विद्वान् थे। आपका जन्म श्रीमाल वंश में जौनपुर निवासी लाला खरगसेन के यहाँ सं. १६४३ में माघ सुदी एकादशी, रविवार को हुआ था। उस समय इनका नाम विक्रमजीत रखा गया था, परन्तु बनारस की यात्रा के समय पार्श्वनाथ की जन्मभूमि वाराणसी के नाम पर इनका नाम बनारसीदास रखा गया। बनारसीदास के कोई भाई न था, पर बहिनें दो थीं। आपने अपने जीवन में बहुत ही उतार-चढ़ाव देखे थे। आर्थिक विषमता का सामना भी आपको बहुत बार करना पड़ा था तथा आपका पारिवारिक जीवन भी कोई अच्छा नहीं रहा। आपकी तीन शादियाँ हुई, ९ सन्तानें हुई - ७ पुत्र एवं दो पुत्रियाँ; पर एक भी जीवित नहीं रहीं। उन्होंने 'अर्धकथानक' में स्वयं लिखा है : कही पचावन बरस लौं, बनारसि की बात । तीनि बिवाहीं भारजा, सुता दोई सुत सात।। नौ बालक हुए मुए, रहे नारि-नर दोई । ज्यों तरुवर पतझार है, रहे दूंठ से होई ।। १. अर्द्ध कथानक : हिन्दी ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, पृष्ठ ११ २. वही, पृष्ठ ३२ ३. वही, पृष्ठ ७१ २० Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008318
Book TitleTattvagyan Pathmala 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1989
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size383 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy