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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार अस्य हि द्रव्यत्वमेव, इतरेषां पंचानां कायत्वमस्त्येव। बहुप्रदेशप्रचयत्वात् कायः। काया इव कायाः। पंचास्तिकायाः। अस्तित्वं नाम सत्ता। सा किंविशिष्टा ? सप्रतिपक्षा, अवान्तरसत्ता महासत्तेति। तत्र समस्तवस्तुविस्तरव्यापिनी महासत्ता, प्रतिनियतवस्तुव्यापिनी ह्यवान्तरसत्ता। समस्तव्यापकरूपव्यापिनी महासत्ता, प्रति-नियतैकरूपव्यापिनी ह्यवान्तरसत्ता। अनन्तपर्यायव्यापिनी महासत्ता, प्रतिनियतैकपर्यायव्यापिनी ह्यवान्तरसत्ता। अस्तीत्यस्य भावः अस्तित्वम्। अनेन अस्तित्वेन कायत्वेन सनाथा: पंचास्तिकायाः। कालद्रव्यस्यास्तित्वमेव, न कायत्वं, काया इव बहुप्रदेशाभावादिति। (आर्या) इति जिनमार्गाम्भोधेरुद्धृता पूर्वसूरिभिः प्रीत्या। षड्द्रव्यरत्नमाला कंठाभरणाय भव्यानाम्।। ५१ ।। इसे द्रव्यत्व ही है, शेष पाँचको कायत्व (भी) है ही। बहुप्रदेशोंके समूहवाला हो वह 'काय' है। 'काय' काय जैसे (-शरीर जैसे अर्थात् बहुप्रदेशोंवाले) होते हैं। अस्तिकाय पाँच हैं। अस्तित्व अर्थात् सत्ता। वह कैसी है ? महासत्ता और अवांतरसत्ता-ऐसी 'सप्रतिपक्ष है। वहाँ, समस्त वस्तुविस्तारमें व्याप्त होनेवाली वह महासत्ता है, प्रतिनियत वस्तुमें व्याप्त होनेवाली वह अवांतरसत्ता है; समस्त व्यापकरूपमें व्याप्त होनेवाली वह महासत्ता है, प्रतिनियत एक रूपमें व्याप्त होनेवाली वह अवांतरसत्ता है; अनंत पर्यायोंमें व्याप्त होनेवाली वह महासत्ता है, प्रतिनियत एक पर्यायमें व्याप्त होनेवाली वह अवांतरसत्ता है। पदार्थका अस्ति' ऐसा भाव वह अस्तित्व है। इस अस्तित्वसे और कायत्वसे सहित पाँच अस्तिकाय है। कालद्रव्यको अस्तित्व ही है, कायत्व नहीं है, क्योंकि कायकी भाँति बहु प्रदेशोंका अभाव है। [ अब ३४ वीं गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज श्लोक कहते हैं:] [ श्लोकार्थ:-] इसप्रकार जिनमार्गरूपी रत्नाकरमेंसे पूर्वाचार्योने प्रीतिपूर्वक षद्रव्यरूपी रत्नोंकी माला भव्योंके कंठाभरणके हेतु बाहर निकाली है। ५१ १। सप्रतिपक्ष = प्रतिपक्ष सहित; विरोधी सहित। (महासत्ता और अवांतरसत्ता परस्पर विरोधी हैं।) २। प्रतिनियत = नियत; निश्चित; अमुक ही। ३। अस्ति = है। (अस्तित्व = होना) Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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