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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार पुद्गलद्रव्यमुच्यते परमाणुर्निश्चयेन इतरेण। पुद्गलद्रव्यमिति पुनः व्यपदेशो भवति स्कन्धस्य।। २९ ।। पुद्गलद्रव्यव्याख्यानोपसंहारोऽयम्। स्वभावशुद्धपर्यायात्मकस्य परमाणोरेव पुद्गलद्रव्यव्यपदेश: शुद्धनिश्चयेन। इतरेण व्यवहारनयेन विभावपर्यायात्मनां स्कन्धपुद्गलानां पुद्गलत्वमुपचारतः सिद्धं भवति। (मालिनी) इति जिनपतिमार्गाद बुद्धतत्त्वार्थजातः त्यजतु परमशेषं चेतनाचेतनं व। भजतु परमतत्त्वं चिच्चमत्कारमात्रं परविरहितमन्तर्निर्विकल्पे समाधौ।। ४३ ।। (अनुष्टुभ् ) पुद्गलोऽचेतनो जीवश्चेतनश्चेति कल्पना। साऽपि प्राथमिकानां स्यान्न स्यान्निष्पन्नयोगिनाम्।। ४४ ।। अन्वयार्थ:-[ निश्चयेन] निश्चयसे [परमाणुः] परमाणुको [पुद्गलद्रव्यम् ] 'पुद्गलद्रव्य' [ उच्यते] कहा जाता है [पुनः] और [ इतरेण] व्यवहारसे [ स्कन्धस्य] स्कंधको [ पुद्गलद्रव्यम् इति व्यपदेशः ] ‘पुद्गलद्रव्य' ऐसा नाम [ भवति ] होता है। टीका:-यह, पुद्गलद्रव्यके कथनका उपसंहार है। शुद्धनिश्चयनयसे स्वभावशुद्धपर्यायात्मक परमाणुको ही 'पुद्गलद्रव्य' ऐसा नाम होता है। अन्य ऐसे व्यवहारनयसे विभावपर्यायात्मक स्कंधपुद्गलोंको पुद्गलपना उपचार द्वारा सिद्ध होता है। [अब २९ वी गाथाकी टीका पूर्ण करते हुए टीकाकार मुनिराज तीन श्लोक कहते [ श्लोकार्थ:-] इसप्रकार जिनपतिके मार्ग द्वारा तत्त्वार्थसमूह को जानकर पर ऐसे समस्त चेतन और अचेतनको त्यागो; अंतरंगमें निर्विकल्प समाधिमें परविरहित (परसे रहित ) चित्चमत्कारमात्र परमतत्त्वको भजो। ४३। [ श्लोकार्थ:-] पुद्गल अचेतन है और जीव चेतन है ऐसी जो कल्पना वह भी प्राथमिकोंको (प्रथम भूमिकावालोंको) होती है, निष्पन्न योगियोंको नहीं होती ( अर्थात् । जिनका योग परिपक्व हुआ है उनको नहीं होती )। ४४। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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