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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates * श्री सद्गुरुदेव स्तुति [ हरिगीत ] भली, संसारसागर तारवा जिनवाणी छे नौका ज्ञानी सुकानी मलया विना नाव पण तारे नहीं; आ काळमां शुद्धात्मज्ञानी सुकानी बहु बहु दोह्यलो, मुज पुण्यराशि फलयो अहो ! गुरुकहान तुं नाविक मलयो । [ अनुष्टुप ] अहो ! भक्त चिदात्माना, सीमंधर - वीर कुंदना ! बाह्यांतर विभवो तारा, तारे नाव मुमुक्षुनां । [ शिखरिणी ] सदा दृष्टि तारी विमळ निज चैतन्य नीरखे, अने ज्ञप्तिमांही दरव-गुण- पर्याय विलसे; निजालंबीभावे परिणति स्वरूपे जई भळे, निमित्तो वहेवारो चिदघन विषे कांई न मळे । [ शार्दूलविक्रीडित ] हैयुं 'सत सत, ज्ञान ज्ञान' धबके जे वज्ञे सुमुमुक्षु सत्त्व झळके, --- रागद्वेष रुचे न, जंप न टंकोत्कीर्ण अकंप ज्ञान महिमा ने वज्रवाणी छूटे, परद्रव्य नातो तूटे; वळे भावेंद्रिमां - अंशमां, हृदये रहे सर्वदा । [ वसंततिलका ] नित्ये सुधाझरण चंद्र ! तने नमुं हुं करुणा अकारण समुद्र ! तने नमुं हुं ; हे ज्ञानपोषक सुमेघ! तने नमुं हुं, आ दासना जीवनशिल्पी ! तने नमुं हुं । [ स्रग्धरा ] ऊंडी ऊंडी, ऊंडेथी सुखनिधि सतना वायु नित्ये वहंती, वाणी चिन्मूर्ति ! तारी उर - अनुभवना सूक्ष्म भावे भरेली; भावो ऊंडा विचारी, अभिनव महिमा चित्तमां लावी लावी, खोयेलुं रत्न पामुं, - मनरथ मननो पूरजो शक्तिशाळी ! -- हिंमतलाल जेठालाल शाह Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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