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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार सण्णाणं चउभेयं मदिसुदओही तहेव मणपज्जं। अण्णाणं तिवियप्पं मदियाई भेददो चेव।। १२ ।। केवलमिन्द्रियरहितं असहायं तत्स्वभावज्ञानमिति। संज्ञानेतरविकल्पे विभावज्ञानं भवेद् द्विविधम्।।११ ।। संज्ञानं चतुर्भेदं मतिश्रुतावधयस्तथैव मनःपर्ययम्। अज्ञानं त्रिविकल्पं मत्यादेर्भेदतश्चैव।। १२ ।। अत्र च ज्ञानभेदलक्षणमुक्तम्। निरुपाधिस्वरूपत्वात् केवलम् , निरावरणस्वरूपत्वात् क्रम-करणव्यवधानापोढम् , अप्रतिवस्तुव्यापकत्वात् असहायम्, तत्कार्यस्वभावज्ञानं भवति। गाथा ११-१२ अन्वयार्थ:-[ केवलम् ] जो (ज्ञान) केवल , [ इन्द्रियरहितम् ] इन्द्रियरहित और [असहायं] असहाय है, [तत्] वह [स्वभावज्ञानम् इति] स्वभावज्ञान है; [संज्ञानेतरविकल्पे] सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञानरूप भेद किये जाने पर, [विभावज्ञानं ] विभावज्ञान [ द्विविधं भवेत् ] दो प्रकारका है। [ संज्ञानं] सम्यग्ज्ञान [ चतुर्भेदं] चार भेदवाला है : [ मतिश्रुतावधयः तथा एव मनःपर्य्ययम् ] मति, श्रुत, अवधि तथा मनःपर्यय; [अज्ञानं च एव ] और अज्ञान (-मिथ्याज्ञान) [ मत्यादेः भेदतः ] मति आदिके भेदसे [ त्रिविकल्पम् ] तीन भेदवाला है। टीका:---यहाँ ( इन गाथाओंमें ) ज्ञानके भेद कहे हैं। जो उपाधि रहित स्वरूपवाला होनेसे केवल है, आवरण रहित स्वरूपवाला होनेसे क्रम, इन्द्रिय और (देश-कालादि) व्यवधान रहित है, एक-एक वस्तुमें व्याप्त नहीं होता (-समस्त वस्तुओंमें व्याप्त होता है) इसलिये असहाय है, वह कार्यस्वभावज्ञान है। १ केवल= अकेला, शुद्ध , मिलावट रहित ( – निर्भेल) २ व्यवधान आड़, परदा, अन्तर, आँतर-दूरी, विध्न। मति, श्रुत , अवधि , अरु मनःपर्यय चार सम्यग्ज्ञान है। अरु कुमति, कुश्रुत, कुअवधि ये तीन भेद मिथ्याज्ञान है।।१२।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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