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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates शुद्धोपयोग अधिकार ३६४ अत्राचार्याः प्रारब्धस्यान्तगमनत्वात् नितरां कृतार्थतां परिप्राप्य निजभावनानिमित्तमशुभवंचनार्थं नियमसाराभिधानं श्रुतं परमाध्यात्मशास्त्रशतकुशलेन मया कृतम्। किं कृत्वा ? पूर्वं ज्ञात्वा अवंचकपरमगुरुप्रसादेन बुद्धेति। कम् ? जिनोपदेशं वीतरागसर्वज्ञमुखारविन्दविनिर्गतपरमोपदेशम्। तं पुन: किंविशिष्टम् ? पूर्वापरदोषनिर्मुक्तं पूर्वापरदोषहेतुभूतसकलमोहरागद्वेषाभावादाप्तमुखविनिर्गतत्वान्निर्दोषमिति। किञ्च अस्य खलु निखिलागमार्थसार्थप्रतिपादनसमर्थस्य नियमशब्दसंसूचितविशुद्धमोक्षमार्गस्य अंचितपञ्चास्तिकायपरिसनाथस्य संचितपंचाचारप्रपञ्चस्य षड्द्रव्यविचित्रस्य सप्ततत्त्वनवपदार्थगर्भीकृतस्य पंचभावप्रपंचप्रतिपादनपरायणस्य निश्चयप्रतिक्रमणप्रत्याख्यान-प्रायश्चित्तपरमालोचना । यहाँ आचार्यश्री (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेव) प्रारंभ किये हुए कार्यके अन्तको प्राप्त करनेसे अत्यन्त कृतार्थताको पाकर कहते हैं कि सेंकड़ों परम-अध्यात्मशास्त्रोंमें कुशल ऐसे मैंने निजभावनानिमित्तसे-अशुभवंचनार्थ नियमसार नामक शास्त्र किया है। क्या करके ( यह शास्त्र किया है)? प्रथम अवंचक परम गुरुके प्रसादसे जानकर। क्या जानकर ? जिनोपदेशको अर्थात् वीतराग-सर्वज्ञके मुखारविंदसे निकले परम उपदेशको। कैसा है वह उपदेश ? पूर्वापर दोष रहित है अर्थात् पूर्वापर दोषके हेतुभूत सकल मोहरागद्वेषके अभावके कारण जो आप्त है उनके मुखसे निकला होनेसे निर्दोष है। और (इस शास्त्रके तात्पर्य संबंधी ऐसा समझना कि), जो (नियमसार-शास्त्र ) वास्तवमें समस्त आगमके अर्थसमूहका प्रतिपादन करनेमें समर्थ है, जिसने नियम-शब्दसे विशुद्ध मोक्षमार्ग सम्यक् प्रकारसे दर्शाया है, जो शोभित पंचास्तिकाय सहित है (अर्थात् जिसमें पाँच अस्तिकायका वर्णन किया गया है), जिसमें पंचाचार-प्रपंचका संचय किया गया है (अर्थात् जिसमें ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचाररूप पाँच प्रकारके आचारका कथन किया है), जो छह द्रव्योंसे विचित्र है ( अर्थात् जो छह द्रव्योंसे निरूपणसे विविध प्रकारका-सुंदर है), सात तत्त्व और नव पदार्थों जिसमें समाये हुए हैं , जो पाँच भावरूप विस्तारके प्रतिपादनमें परायण है, जो निश्चय-प्रतिक्रमण, निश्चयप्रत्याख्यान, निश्चय-प्रायश्चित्त, परम-आलोचना, * अवंचक = ठगे नहीं ऐसे; निष्कपट; सरल; ऋजु। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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