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________________ २ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार [ अनुष्टुभ् ] वाचं वाचंयमीन्द्राणां वक्त्रवारिजवाहनाम्। वन्दे नयद्वयायत्तवाच्यसर्वस्वपद्धतिम् ।। २ ।। पूजूँगा।) जिसने भवोंको जीता है उसकी मैं वन्दना करता हूँ- उसे प्रकाशमान ऐसे श्री जिन कहो, 'सुगत कहो, गिरिधर कहो, 'वागीश्वर कहो या शिव कहो । १ । [ श्लोकार्थ :- ] 'वाचंयमीन्द्रोंका ( - जिनदेवोंका) मुखकमल जिसका वाहन है और दो नयोंके आश्रयसे सर्वस्व कहनेकी पद्धति है उस वाणीकी ( - जिनभगवंतोकी स्याद्वादमुद्रित वाणीकी) मैं वंदना करता हूं । २। [ शालिनी ] सिद्धान्तोद्धश्रीधवं सिद्धसेनं तर्काब्जार्कं भट्टपूर्वाकलंकम्। शब्दाब्धीन्दुं पूज्यपादं च वन्दे तद्विद्याढ्यं वीरनन्दि व्रतीन्द्रम् ।। ३ ।। [ श्लोकार्थ:-] उत्तम सिद्धांतरूपी श्रीके पति सिद्धसेन मुनीन्द्रकी, 'तर्ककमलके सूर्य भट्ट अकलंक मुनीन्द्रकी, शब्दसिंधुके चंद्र पूज्यपाद मुनीन्द्रकी और तद्विद्यासे (सिद्धान्तादि तीनोंके ज्ञानसे) समृद्ध वीरनंदि मुनींद्रकी मैं वंदना करता हूँ । ३। १। बुद्धको सुगत कहाजाता है। सुगत अर्थात् (१) शोभनीकताको प्राप्त, अथवा (२) संपूर्णताको प्राप्त। श्री जिनभगवान (१) मोहरागद्वेषका अभाव होनेके कारण शोभनीकताको प्राप्त हैं, और ( २ ) केवलज्ञानादिको प्राप्त कर लिया है इसलिये संपूर्णताको प्राप्त हैं; इसलिये उन्हें यहाँ सुगत कहा है। २। कृष्णको गिरिधर ( अर्थात् पर्वतको धारण कर रखनेवाले) कहा जाता है । श्री जिन भगवान अनंत-वीर्यवान होनेसे उन्हें यहाँ गिरिधर कहा है । ६। तर्ककमलके सूर्य ७ | शब्दसिंधुके चंद्र ३। ब्रह्माको अथवा बृहस्पतिको वागीश्वर ( अर्थात् वाणीके अधिपति ) कहा जाता है। श्री जिनभगवान दिव्यवाणीके प्रकाशक होनेसे उन्हें यहाँ वागीश्वर कहा है। 1 ४। महेशको (शंकरको ) शिव कहा जाता है। श्री जिनभगवान कल्याणस्वरूप होनेसे उन्हें यहाँ शिव कहा गया है। ५। वाचंयमींद्र = मुनियोंमें प्रधान अर्थात् जिनदेव मौन सेवनकरनेवालोंमें श्रेष्ठ अर्थात् जिनदेव; वाक्संयमियोंमें इंद्र समान अर्थात् जिनदेव। [ वाचंयमी मुनि; मौन सेवन करने वाले; वाणीके संयमी । ] = = = तर्करूपी कमलको प्रफुल्लित करनेमें सूर्य समान। शब्दरूपी समुद्रको उछालनेमें चंद्र समान Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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