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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 卐 -L 卐 5 शुद्धनिश्चय प्रायश्चित्त अधिकार 卐 卐 卐 55555555555555555555 अथाखिलद्रव्यभावनोकर्मसंन्यासहेतुभूतशुद्धनिश्चयप्रायश्चित्ताधिकारः कथ्यते। वदसमिदिसीलसंजमपरिणामो करणणिग्गहो भावो । सो हवदि पायछित्तं अणवरयं चैव कायव्वो ।। ११३ ।। व्रतसमितिशीलसंयमपरिणामः करणनिग्रहो भावः । सभवति प्रायश्चित्तम् अनवरतं चैव कर्तव्यः ।। ११३ ।। निश्चयप्रायश्चित्तस्वरूपाख्यानमेतत्। पंचमहाव्रतपंचसमितिशीलसकलेन्द्रियवाङ्मनःकायसंयमपरिणामः पंचेन्द्रियनिरोधश्च स खलु परिणतिविशेषः, प्रायः प्राचुर्येण निर्विकारं चित्तं प्रायश्चित्तम्, अनवरतं अब समस्त द्रव्यकर्म, भावकर्म तथा नोकर्मके संन्यासके हेतुभूत शुद्धनिश्चय - प्रायश्चित्त अधिकार कहा जाता है। गाथा १९३ अन्वयार्थः-[ व्रतसमितिशीलसंयमपरिणामः ] व्रत, समिति, शील और संयमरूप परिणाम तथा [ करणनिग्रहः भावः ] इंद्रियनिग्रहरूप भाव [ सः ] वह [ प्रायश्चित्तम् ] प्रायश्चित्त [भवति ] है [ च एव ] और वह [ अनवरतं ] निरंतर [ कर्तव्य: ] कतैव्य है। टीका:-यह, निश्चय - प्रायश्चित्तके स्वरूपका कथन है। पाँच महाव्रतरूप, पाँच समितिरूप, शीलरूप और सर्व इंद्रियोंके तथा मनवचनकायाके संयमरूप परिणाम तथा पाँच इंद्रियोंका निरोध - यह परिणतिविशेष सो प्रायश्चित्त है। प्रायश्चित्त अर्थात् प्रायः चित्त - प्रचुररूपसे निर्विकार चित्त । अंतर्मुखाकार परम-समाधिसे युक्त, व्रत, समिति, संयम, शील, इंद्रिय-रोधका जो भाव है । वह भाव प्रायश्चित्त है, अरु अनवरत कर्तव्य है ।। ११३ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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