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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार २०२ (मंदाक्रांता) प्रत्याख्यानं भवति सततं शुद्धचारित्रमूर्तेः भ्रान्तिध्वंसात्सहजपरमानंदचिनिष्टबुद्धेः। नास्त्यन्येषामपरसमये योगिनामास्पदानां भूयो भूयो भवति भविनां संसृतिर्घोररूपा।। १४५ ।। (शिखरिणी) महानंदानंदो जगति विदितः शाश्वतमयः स सिद्धात्मन्युच्चैर्नियतवसतिर्निर्मलगुणे। अमी विद्वान्सोपि स्मरनिशितशस्त्रैरमिहताः कथं कांक्षंत्येनं बत कलिहतास्ते जडधियः।। १४६ ।। __(मंदाक्रांता) प्रत्याख्यानाद्भवति यमिषु प्रस्फुटं शुद्धशुद्धं सच्चारित्रं दुरघतरुसांद्राटवीवह्विरूपम्। तत्त्वं शीघ्रं कुरु तव मतौ भव्यशार्दूल नित्यं यत्किंभूतं सहजसुखदं शीलमूलं मुनीनाम्।।१४७ ।। [ श्लोकार्थ:-] भ्रांतिके नाशसे जिसकी बुद्धि सहज-परमानंदयुक्त चेतनमें निष्ठित (-लीन, एकाग्र) है ऐसे शुद्धचारित्रमूर्तिको सतत प्रत्याख्यान है। परसमयमें (-अन्य दर्शनमें) जिनका स्थान है ऐसे अन्य योगियोंको प्रत्याख्यान नहीं होता; उन संसारियोंको पुनः-पुनः घोर संसरण (-परिभ्रमण) होता है। १४५। [ श्लोकार्थ:-] जो शाश्वत महा आनंदानंद जगतमें प्रसिद्ध है, वह निर्मल गुणवाले सिद्धात्मामें अतिशयरूपसे तथा नियतरूपसे रहता है। (तो फिर,) अरेरे! यह विद्वान भी कामके तीक्ष्ण शस्त्रोंसे घायल होते हुए कलेशपीड़ित होकर उसकी (कामकी) इच्छा क्यों करते हैं ! वे जड़बुद्धि है। १४६ । [ श्लोकार्थ:-] जो दुष्ट पापरूपी वृक्षोंकी घनी अटवीको जलाने के लिये अग्निरूप है ऐसा प्रगट शुद्ध-शुद्ध सत्चारित्र संयमियोंको प्रत्याख्यानसे होता है; (इसलिये) हे भव्यशार्दूल! (–भव्योत्तम!) तू शीघ्र अपनी मतिमें तत्त्वको नित्य धारण कर-कि जो तत्त्व सहज सुखका देनेवाला तथा मुनियोंके चारित्रका मूल है। १४७। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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