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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates 59595555555555555555555 म फ़ निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार के ज 555555555555555555555 अथेदानीं सकलप्रव्रज्यासाम्राज्यविजयवैजयन्तीपृथुलदंडमंडनायमानसकलकर्मनिर्जराहेतुभूतनिःश्रेयसनिश्रेणीभूतमुक्तिभामिनीप्रथमदर्शनोपायनीभूतनिश्चयप्रत्याख्यानाधिका र: कथ्यते। तद्यथा अत्र सूत्रावतारः। मोत्तूण सयलजप्पमप्पागयसुहमसुहवारणं किच्चा। अप्पाणं जो झायदि पच्चक्खाणं हवे तस्स।।९५ ।। मुक्त्वा सकलजल्पमनागतशुभाशुभनिवारणं कृत्वा। आत्मानं यो ध्यायति प्रत्याख्यानं भवेत्तस्य।। ९५ ।। अब निम्नानुसार निश्चय-प्रत्याख्यान अधिकार कहा जाता है कि जो निश्चयप्रत्याख्यान सकल प्रव्रज्यारूप साम्राज्यकी विजय-ध्वजाके विशाल दंडकी शोभा समान है, समस्त कर्मोंकी निर्जराके हेतुभूत है, मोक्षकी सीढ़ी है और मुक्तिरूपी स्त्रीके प्रथम दर्शनकी भेंट है। यहाँ गाथासूत्रका अवतरण किया जाता है :--- गाथा ९५ अन्वयार्थ:-[ सकलजल्पम् ] समस्त जल्पको (-वचनविस्तारको) [मुक्त्वा ] छोड़कर और [अनागतशुभाशुभनिवारणं ] अनागत शुभ-अशुभका निवारण [ कृत्वा ] करके [ यः] जो [आत्मानं] आत्माको [ध्यायति] ध्याता है, [ तस्य ] उसे [प्रत्याख्यानं ] प्रत्याख्यान [ भवेत् ] है। भावी शुभाशुभ छोड़कर तजकर वचन विस्तार रे । जो जीव ध्याता आत्म, प्रत्याख्यान होता है उसे ।। ९५।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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