SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates गाथा ७० ७१ गाथा | विषय निश्चय मनो-वचनगप्तिका स्वरूप ४२ | निश्चयकायगुप्तिका स्वरूप | भगवान अहेत् परमेश्वरका स्वरूप ४३ | भगवंत सिद्ध परमेष्ठियोंका स्वरूप ४४ | भगवंत आचार्यका स्वरूप अध्यापक नामक परमगुरुका स्वरूप ४५ | सर्व साधुओंके स्वरूपका कथन व्यवहारचारित्र-अधिकारका उपसंहार ४७ | और निश्चयचारित्रकी सूचना ७२ ७३ विषय शुद्ध जीवको समस्त संसारविकार नहीं हैं, ऐसा निरूपण शुद्ध आत्माको समस्त विभावोंका अभाव है, ऐसा कथन शुद्ध जीव स्वरूप कारणपरमात्माको समस्त पौद्गलिक । विकार नहीं हैं, ऐसा कथन । संसारी और मुक्त जीवोंमें अन्तर न होने का कथन कार्यसमयसार और कारणसमयसारमें अन्तर न होनेका कथन निश्चय और व्यवहारनयकी उपादेयता का प्रकाशन हेय-उपादेय अथवा त्याग-ग्रहणका स्वरूप रत्नत्रयका स्वरूप ७४ ४८ | ५। परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार | शुद्ध आत्माको सकल कर्तृत्वके अभाव ४९ | सम्बन्धी कथन ५० | भेदविज्ञान द्वारा क्रमश: निश्चय चारित्र | होता है, तत्सम्बन्धी कथन वचनमय प्रतिक्रमण नामक सूत्रसमुदाय का निरास ५६ आत्म-आराधनामें वर्तते हुए जीवको ४। व्यवहारचारित्र अधिकार । अहिंसाव्रतका स्वरूप ही सत्यव्रतका स्वरूप अचौर्यव्रतका स्वरूप ब्रह्मचर्यव्रतका स्वरूप परिग्रह-परित्यागवतका स्वरूप | ईर्यासमितिका स्वरूप भाषासमितिका स्वरूप ५७ | प्रतिक्रमणस्वरूप कहा है, ततसम्बंधी कथन परमोपेक्षासंयमधरको निश्चयप्रतिक्रमण का स्वरूप होता है, ततसम्बंधी निरूपण ६० | उन्मार्गके परित्याग और सर्वज्ञ वीतराग६१ मार्गके स्वीकार सम्बन्ध वर्णन | निःशल्यभावरूप परिणत महातपोधन ही निश्चयप्रतिक्रमणस्वरूप है, ६३ | तत्सम्बन्धी कथन ६४ | त्रिगुप्तिगुप्त ऐसे परम तपोधनको ६५ | निश्चयचारित्र होनेका कथन ६६ | ध्यानके भेदोंका स्वरूप ६७ आसन्नभव्य और अनासन्नभव्य जीवके ६८ पूर्वापर परिणामका स्वरूप ६२/ नि. एषणासमितिका स्वरूप | आदाननिक्षेपणसमितिका स्वरूप प्रतिष्ठापनसमितिका स्वरूप व्यवहार मनोगप्तिका स्वरूप | वचनगुप्तिका स्वरूप | कायगुप्तिका स्वरूप Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy