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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates परमार्थ-प्रतिक्रमण अधिकार एरिसभेदब्भासे मज्झत्थो होदि तेण चारित्तं । तं दिढकरणणिमित्तं पडिक्कमणादी पवक्खामि ।। ८२ ।। ईदृग्भेदाभ्यासे मध्यस्थो भवति तेन चारित्रम् । तद्दृढीकरणनिमित्तं प्रतिक्रमणादिं प्रवक्ष्यामि ।। ८२ ।। अत्र भेदविज्ञानात् क्रमेण निश्चयचारित्रं भवतीत्युक्तम्। पूर्वोक्तपंचरत्नांचितार्थपरिज्ञानेन पंचमगतिप्राप्तिहेतुभूते जीवकर्मपुद्गलयोर्भेदाभ्यासे सति, तस्मिन्नेव च ये मुमुक्षवः सर्वदा संस्थितास्ते ह्यत एव मध्यस्था:, तेन कारणेन तेषां परमसंयमिनां वास्तवं चारित्रं भवति । तस्य चारित्राविचलस्थितिहेतोः प्रतिक्रमणादिनिश्चयक्रिया निगद्यते। अतीतदोषपरिहारार्थं यत्प्रायश्चित्तं क्रियते तत्प्रतिक्रमणम्। आदिशब्देन प्रत्याख्यानादीनां संभवश्चोच्यत इति। १५२ निज भावसे भिन्न ऐसे सकल विभावको छोड़कर अल्प कालमें मुक्तिको प्राप्त करता है । १०९ । गाथा ८२ अन्वयार्थः-[ ईदृग्भेदाभ्यासे ] ऐसा भेद - अभ्यास होने [ मध्यस्थ : ] जीव मध्यस्थ होता है, [तेन चारित्रम् भवति ] इसलिये चारित्र होता है। [ तद्दृढीकरणनिमित्तं ] उसे ( चारित्रको ) दृढ़ करनेके निमित्तसे [ प्रतिक्रमणादिं प्रवक्ष्यामि ] मैं प्रतिक्रमणादि कहूंगा। टीका:-यहाँ भेदविज्ञान द्वारा क्रमसे निश्चय - चारित्र होता है ऐसा कहा है। पूर्वोक्त पंचरत्नोंसे शोभित अर्थपरिज्ञान ( - पदार्थोंके ज्ञान ) द्वारा पंचम गतिकी प्राप्तिके हेतुभूत ऐसा जीवका और कर्मपुद्गलका भेद - अभ्यास होनेपर, उसी में जो मुमुक्षु सर्वदा संस्थित रहते हैं, वे उस ( सतत भेदाभ्यास) द्वारा मध्यस्थ होते हैं और उस कारण से उन परम संयमियोंको वास्तविक चारित्र होता है। उस चारित्रकी अविचल स्थितिके हेतुसे प्रतिक्रमणादि निश्चयक्रिया कही जाती है। अतीत ( - भूतकालके ) दोषोंके परिहार हेतु जो प्रायश्चित्त किया जाता है वह प्रतिक्रमण है। 'आदि' शब्दसे प्रत्याख्यानादिका संभव कहा जाता है (अर्थात् प्रतिक्रमणादिमें जो 'आदि' शब्द है वह प्रत्याख्यान आदिका भी समावेश करनेके लिये है ) | इस भेदके अभ्याससे माध्यस्थ हो चारित लहे । चारित्र दृढ़ता हेतु हम प्रतिक्रमण आदिक अब कहें ।। ८२ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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