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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates व्यवहारचारित्र अधिकार ११४ इह हि पंचमव्रतस्वरूपमुक्तम्। सकलपरिग्रहपरित्यागलक्षणनिजकारणपरमात्मस्वरूपावस्थितानां परमसंयमिनां परम-जिनयोगीश्वराणां सदैव निश्चयव्यवहारात्मकचारुचारित्रभरं वहतां, बाह्याभ्यन्तरचतुर्विंशतिप-रिग्रहपरित्याग एव परंपरया पंचमगतिहेतुभूतं पंचमव्रतमिति। तथा चोक्तं समयसारे उस , [ चारित्रभरं वहतः ] 'चारित्रभर वहन करनवालेको [ पंचमव्रतम् इति भणितम् ] पाँचवाँ व्रत कहा है। टीका:-यहाँ (इस गाथामें ) पाँचवें व्रतका स्वरूप कहा गया है। सकल परिग्रहके परित्यागस्वरूप निज कारणपरमात्माके स्वरूपमें अवस्थित (स्थिर हुए) परमसंयमिओंको--परम जिनयोगीश्वरोंको-सदैव निश्चयव्यवहारात्मक सुंदर चारित्रभर वहन करनेवालोंको, बाह्य-अभ्यंतर चौबीस प्रकारके परिग्रहका परित्याग ही परंपरासे पंचमगतिके हेतुभूत ऐसा पाँचवाँ व्रत है। इसीप्रकार (श्रीमद्भगवत्कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत) श्री समयसारमें ( २०८वीं गाथा द्वारा) कहा है कि: शुद्ध परिणति न हो वहाँ शुभोपयोगी हठ सहित होता है; वह शुभोपयोग तो व्यवहारव्रत भी नहीं कहलाता है। [ इस पाँचवें व्रतकी भाँति अन्य व्रतोंका भी समझ लेना।] १। चारित्रभर = चारित्रका भार; चारित्रसमूह; चारित्रकी अतिशयता। २। शुभोपयोगरूप व्यवहारव्रत शुद्धोपयोगका हेतु है और शुद्धोपयोग मोक्षका हेतु है ऐसा मान कर यहाँ उपचारसे व्यवहारव्रतको मोक्षका परंपराहेतु कहा है। वास्तवमें तो शुभोपयोगी मुनिको मुनियोग्य शुद्धपरिणति ही (शुद्धात्मद्रव्यका अवलंबन करती है इसलिये) विशेष शुद्धिरूप शुद्धोपयोगका हेतु होती है और वह शुद्धोपयोग मोक्षका हेतु होता है। इस प्रकार इस शुद्धपरिणतिमें रहे हुए मोक्षके परंपराहेतुपनेका आरोप उसके साथ रहनेवाले- शुभोपयोगमें करके व्यवहारव्रतको मोक्षका परंपराहेतु कहा जाता है। जहाँ शुद्धपरिणति ही न हो वहाँ वर्तते हुए शुभोपयोगमें मोक्षके परंपराहेतुपनेका आरोप भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि जहाँ मोक्षका यथार्थ परंपराहेतु प्रगट ही नहीं हुआ है-विद्यमान ही नहीं है वहाँ शुभोपयोगमें आरोप किसका किया जाय ? Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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