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________________ ८३ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates नियमसार चउगइभवसंभमणं जाइजरामरणरोगसोगा य । कुलजोणिजीवमग्गणठाणा जीवस्स णो संति ।। ४२ ।। चतुर्गतिभवसंभ्रमणं जातिजरामरणरोगशोकाश्च । कुलयोनिजीवमार्गणस्थानानि जीवस्य नो सन्ति ।। ४२ ।। इह हि शुद्धनिश्चयनयेन शुद्धजीवस्य समस्तसंसारविकारसमुदयो न समस्तीत्युक्तम्। द्रव्यभावकर्मस्वीकाराभावाच्चतसृणां नारकतिर्यङ्मनुष्यदेवत्वलक्षणानां गतीनां परिभ्रमणं न भवति । नित्यशुद्धचिदानन्दरूपस्य कारणपरमात्मस्वरूपस्य द्रव्यभावकर्मग्रहणयोग्यविभावपरिणतेरभावान्न जातिजरामरणरोगशोकाश्च। गाथा -४२ अन्वयार्थः-[ जीवस्य ] जीवको [ चतुर्गतिभवसंभमणं ] चार गतिके भवोंमें परिभ्रमण, [ जातिजरामरणरोगशोका: ] जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, [ कुलयोनिजीवमार्गणस्थानानि च] कुल, योनि, जीवस्थान और मार्गणास्थान [ नो सन्ति ] नहीं है । टीकाः-शुद्ध निश्चयनयसे शुद्ध जीवको समस्त संसारविकारोंका समुदाय नहीं है ऐसा यहाँ (इस गाथामें ) कहा है। द्रव्यकर्म तथा भावकर्मका स्वीकार न होनेसे जीवको नारकत्व, तिर्यंचत्व, मनुष्यत्व और देवत्वस्वरूप चार गतियोंका परिभ्रमण नहीं है। नित्य-शुद्ध चिदानन्दरूप कारणपरमात्मस्वरूप जीवको द्रव्यकर्म तथा भावकर्मके ग्रहणको योग्य विभावपरिणतिका अभाव होनेसे जन्म, जरा, मरण, रोग और शोक नहीं है। चतु-गति भ्रमण नहिं, जन्म-मृत्यु न, रोग, शोक, जरा नहीं । कुल योनि नहिं नहिं जीवस्थान, रु मार्गणाके स्थान नहिं ।। ४२ ।। Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008273
Book TitleNiyamsara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorHimmatlal Jethalal Shah
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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