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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है ; हे परम उपकारी! श्री लालचन्द्र भाई जी आपने एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म, गूढ़ मूल दुख के कारण ( इन्द्रियज्ञान ) को शोधा और उस पर आजीवन वज्र प्रहार करके आत्मीक सुख का मार्ग अनवरतपने प्रशस्त किया ! भव्य समूह द्वारा युगयुगान्तर तक स्मरणीय ! आप श्री के इस अनन्त उपकार से अनन्तकाल तक अनन्त मुमुक्षु पर को जानना बन्द करके अंतर्मुख होकर आत्मानुभव जनित आनन्द से तृप्त होकर परमसिद्धि को प्राप्त होंगे। पू. भाई श्री लालचन्द्र भाई जी के करुणाशील हृदय में यह भावना अकर्त्ता बहुत समय से रहा करती थी कि 'आत्मा कर्त्ता नहीं है है, ज्ञाता है' यह बात तो पू. गुरुदेव की कृपा से बहुत प्रकाश में आ गई है साथ ही पर का ज्ञाता नहीं है यह बात भी पू. गुरुदेव ने की है, कही है, परन्तु फिर भी समाज का ध्यान ' पर का ज्ञाता नहीं है' इस बात पर सम्पूर्ण रूप से नहीं जाता इसलिए इन्द्रियज्ञान के निषेध के लिए आचार्यों, ज्ञानियों के आधार एकत्रित करके यदि एक संकलन रूप शास्त्र तैयार होवे तो मुमुक्षुओं का ध्यान केन्द्रित हो, और इन्द्रियज्ञान का निषेध कर अतीन्द्रिय ज्ञान प्रकट करने में उद्यमवंत हो सकें। पू. भाई श्री की इस अतिशय पवित्र, आत्महितकारी भावना को सम्पूर्ण रूप से सफल, साकार, मूर्तिमंत करने के लिये सुपात्र कु. संध्या बहन ने संकलन का कार्य सहर्ष स्वीकार कर लिया। और शीघ्र ही संकलन सम्पादित हो गया ! — - ― • - - हिम्मतनगर मुमुक्षु मण्डल ने पू. भाई श्री से पुस्तक छपाने की विनती की। पूज्य भाई श्री ने सहर्ष स्वीकृति देकर यह सौभाग्य हिम्मतनगर मुमुक्षु मण्डल को प्रदान किया। वहीं पर दिल्ली से आये हुए Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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