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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है विषय-फिर वे साक्षात् भगवान, भगवान की वाणी, देव, गुरु, शास्त्र और शुभाशुभ राग ये सब ग्राम में अर्थात् परद्रव्य के समुह में आ जाते है। इनकी ओर लक्ष्य जाने पर राग ही उत्पन्न होता है। समोशरण में साक्षात् भगवान विराजमान हों, उनका लक्ष्य करने पर भी राग ही उत्पन्न होता है। यह अधर्म है। यह कोई चैतन्य की गति नहीं है, यह तो विपरीत गति है। मोक्षपाहुड़ में कहा है कि 'परदव्वाओ दुग्गई। अतः परद्रव्य से उदासीन होकर एक त्रिकाली ज्ञायक भाव, जो सर्वतः ज्ञानघन है, उस एक का ही अनुभव करने पर अकेले (शुद्ध) ज्ञान का स्वाद आता है। यह जैनदर्शन है। इन्द्रियों के विषयों में राग द्वारा जो ज्ञान का अनुभव (ज्ञेयाकार ज्ञान) वह आत्मा का स्वाद-अनुभव नहीं है; यह जैनशासन नहीं है। आत्मा में भेद के लक्ष्य से जो राग उत्पन्न होता है-उस राग का ज्ञान होता है ऐसा मानना यह अज्ञान है, मिथ्यादर्शन है। एक ज्ञान के द्वारा ज्ञान का वेदन ही सम्यक् है, यथार्थ है। अहो! समयसार विश्व का एक अजोड़ चक्षु है। यह वाणी तो देखो। सीधी आत्मा की ओर ले जाती है।।४५९ ।। (श्री प्रवचनरत्नाकर, भाग १, पैरा २, पृष्ठ २६६) * यहाँ आत्मा की अनुभूति को ही ज्ञान की अनुभूति कहा है। अज्ञानी जीव स्वज्ञेय को छोड़कर अनन्त परज्ञेयों में ही अर्थात् आत्मा के अतीन्द्रिय ज्ञान को छोड़कर, इन्द्रियज्ञान में ही लुब्ध हो रहे हैं। निज चैतन्यघन स्वरूप आत्मा का अनुभव नहीं है, ऐसे अज्ञानी परवस्तु में-परज्ञेयों में लुब्ध हैं, उनकी दृष्टि और रुचि राग आदि पर है। वे इन्द्रियज्ञान के विषयों से और राग आदि से अनेकाकार हुए ज्ञान को ही स्वपने आस्वादते हैं। यह मिथ्यात्व है। देव-गुरु-शास्त्र परद्रव्य हैं, उनकी श्रद्धा का विकल्प राग है, यह राग मिथ्यात्व नहीं है, परन्तु राग से अनेकाकार-परज्ञेयाकार २२५ * मैं पर को जानता हूँ ऐसी मान्यता में भावेन्द्रिय से एकत्वबुद्धि होती है Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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