SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है इन्द्रियों के विषय-इनको जीतना अर्थात् इनका आश्रय छोड़कर, औरअतीन्द्रिय ऐसे भगवान आत्मा का आश्रय लेना, तब उसको सम्यकदर्शन और सम्यग्ज्ञान होता है। इसका नाम इन्द्रियों को जीता है। समझ में आया कुछ ?।।४४१।। (श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंगग्रहण बोल १-२ के ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * अब उपयोग की बात है। जिसको लिंग के द्वारा, उपयोग नाम के लक्षण द्वारा ग्रहण अर्थात् ज्ञेय-पदार्थ का आलम्बन नहीं है; जाननेदेखने का जो उपयोग है उसे आत्मा का आलम्बन है। आत्मा के अवलम्बन से जो कोई उपयोग होता है, उसको उपयोग कहने में आता है। इस उपयोग को ज्ञेय पदार्थ का आलम्बन नहीं है; अर्थात् जिस उपयोग में ज्ञेय पदार्थ निमित्त पड़े और उपयोग होवे, वह आत्मा का उपयोग नहीं है। ऐसी बात है। श्रोता : आत्मा का उपयोग नहीं तो उपयोग किसका ? समाधान : पर की तरफ झुकाव वाली दशा-परलक्ष वाली दशा-ये उपयोग आत्मा का नहीं हैं; परसत्तावलंबी ज्ञान ये आत्मा का उपयोग नहीं है। आहा! ऐसी बात है।।४४२।। (श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंगग्रहण बोल १-२ के ___ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * पर द्रव्य के आलम्बन वाला उपयोग-जीव का नहीं है। क्योंकि पर द्रव्य के उपयोग में लक्ष जाने से आनन्द नहीं आता है वहाँ तो आकुलता है। आहाहा...! परसन्मुख ज्ञान होता है, वह होता है अपने से ( अपनी योग्यता से ) कहीं निमित्त से नहीं होता। परन्तु जिस ज्ञान को निमित्त का २१६ *जानने के लोभ में सारा संसार है* *मैं पर को नहीं जानता हूँ* Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy