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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है पू. भाई श्री लालचन्द्र भाई जी के हृदयोद्गार अनंतकाल से इस जीव को इन्द्रियज्ञान (अज्ञान) प्रकट हो रहा है। यद्यपि वास्तव में तो इसको सामान्य उपयोग प्रकट हो रहा है; कि जिसमें इसका अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा जानने में आ रहा है, फिर भी इसका लक्ष परपदार्थों के ऊपर होने से, द्रव्येन्द्रियों के अवलम्बन से इसे भावेन्द्रिय अर्थात् इन्द्रियज्ञान प्रकट हो जाता है! और यह इन्द्रियज्ञान जिसको जानता है उसमें अहम् कर लेता है – मेरेपने की बुद्धि कर लेता है, क्योंकि जाने हुए का श्रद्धान हो जाता है। इन्द्रियज्ञान से पर को जानते ही पर में मेरापना नियम से होता है। इसलिए इन्द्रियज्ञान ही वास्तव में मोह की उत्पत्ति का मूल कारण है अथवा संसार की उत्पत्ति का मूल कारण है – ऐसा सन्त फरमाते हैं। इन्द्रियज्ञान जिसको जानता है उससे एकत्व करता है, उससे विभक्त करने की ताकत उसमें नहीं है क्योंकि इन्द्रियज्ञान एकांत पर प्रकाशक है। इन्द्रियज्ञान द्वारा आत्मा का अनुभव नहीं होता, इसलिए इन्द्रियज्ञान हेय है! जब तक इन्द्रियज्ञान को जीव अंतर्मुख होकर नहीं जीतता तब तक ज्ञेयज्ञायक का संकरदोष नहीं मिटता। वास्तव में तो आत्मा जाननहार है और इस जाननहार आत्मा को ही जाने वही वास्तव में ज्ञान है। आत्मा ही ज्ञाता है और आत्मा ही ज्ञेय है – ऐसा भूलकर मैं ज्ञाता हूँ और ये परपदार्थ मेरे ज्ञेय है – ऐसे अभिप्राय में मिथ्यात्व उत्पन्न होता है, भ्रांति होती है, अध्यवसान होता है। इसलिए संतों ने इन्द्रियज्ञान के निषेध द्वारा अतीन्द्रिय ज्ञानमयी आत्मा Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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