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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है * एक द्रव्य , दूसरे द्रव्य को चुम्बता नहीं है; स्पर्शता नहीं है, छूता भी नहीं है। इसलिए छुए बिना, स्पर्श किए बिना आत्मा को जो इन्द्रियों के निमित्त से ज्ञान होता है, इन्द्रियों को स्पर्श किए बिना और इन्द्रियों के निमित्त से ज्ञान होता है-वह ज्ञान आत्मा का नहीं है। वह आत्मज्ञान नहीं है। और इन्द्रियज्ञान द्वारा जानकर उसकी प्रतीति यह मिथ्या प्रतीति है। जब आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञान से जानना करे, इस ज्ञान में प्रतीति करे, उसको सम्यकदर्शन कहते है।।४३५ ।। __ (श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंगग्रहण बोल १-२ के ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * इन्द्रियों के द्वारा शास्त्र सुने, तीर्थंकर भगवान की साक्षात् वाणी सुनी और इसको ज्ञान हुआ-इस इन्द्रियज्ञान के द्वारा भी आत्मा जनाने लायक नहीं है (जानने में आने लायक नहीं है)।।४३६ ।। (श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंगग्रहण बोल १-२ के ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * अहाहा...! जितना यहाँ इन्द्रिय से ज्ञान होता है-उस इन्द्रियज्ञान से भगवान आत्मा जनाने लायक नहीं है। उसका स्वभाव ही ऐसा है कि इन्द्रियज्ञान से जनाने लायक, यह आत्मा नहीं है।।४३७।। (श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंगग्रहण बोल १-२ के ___ ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * 'मैं जानता हूँ-ऐसी जानकारी का अहंकार नहीं करना'- यह मुझे आता है मैं समझता हूँ इसमें-बह मत जाना'-अज्ञानी को जरा-सा भी २१४ * मैं पर को जानता हूँ-यहाँ से संसार की शुरूआत होती है* Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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