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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है * हाँ, लेकिन इस पैसा को ज्ञेय (परज्ञेय) कर डालें तो? इस पैसा को ज्ञेय ( परज्ञेय) करे कहाँ से ? अन्दर निज स्वरूप को ज्ञान में ज्ञेय किये बिना, निज ज्ञानानंद स्वरूप का अनुभव किये बिना पर पदार्थ को ज्ञेय (परज्ञेय) किस प्रकार करे ? कर ही नहीं सकता।।४१९ ।। (श्री प्रवचनरत्नाकर , भाग-१०, पृष्ठ २०५, पैराग्राफ ५) * इन्द्रिय के द्वारा शास्त्र को सुने, और उसको ज्ञान होवे यह भी इन्द्रियों से हुआ ज्ञान है इसे आत्मा का ज्ञान-जानपना नहीं कहते हैं। आत्मा इन्द्रियों के द्वारा जानता है ऐसा नहीं कहते हैं। ये सुनने से ज्ञान होवे ऐसा आत्मा का स्वरूप ही नहीं है।।४२०।। ( श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंग ग्रहण बोल १ के ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * प्रथम शब्द ज्ञायक अर्थात् चैतन्य, चैतन्य प्रकाश का पुंज, ज्ञायकस्वरूप भगवान इन्द्रियों के द्वारा जानने वाला है ही नहीं है। भगवान परमात्मा जिनेन्द्र देव त्रिलोकनाथ ऐसा फरमाते हैं कि-जिसको ( आत्मा को) इन्द्रिय द्वारा जानना होवे वह आत्मा ही नहीं है। शास्त्रों को सुनकर जो ज्ञान होता है-वह होता है उसकी पर्याय के उपादान से। श्रवण से हुआ है ऐसा नहीं है। फिर भी ये इन्द्रिय द्रारा जो जानना (जानकारी का कार्य हुआ) वह आत्मा का कार्य नहीं है।।४२१।। (श्री प्रवचनसार, गाथा १७२, अलिंग ग्रहण के बोल १ के ऊपर पू. गुरुदेव श्री के प्रवचन में से) * प्रश्न : ज्ञानी को इन्द्रियज्ञान है ने ? २०८ * मैं जाननेवाला और लोकालोक ज्ञेय-ऐसा किसने कहा है ?* Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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