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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है * शरीर परिणाम को प्राप्त द्रव्येन्द्रिय, खण्ड-खण्ड ज्ञानरूप भावेन्द्रिय और इन्द्रिय के विषयभूत पदार्थ-कुटुम्ब, परिवार, देव, शास्त्र, गुरु इत्यादी सब परज्ञेय हैं और ज्ञायक स्वयं भगवान आत्मा स्वज्ञेय है। विषयों की आसक्ति से उन दोनों का एक जैसा अनुभव होता था, निमित्त की रुचि से ज्ञेय-ज्ञायक का एक जैसा अनुभव होता था। लेकिन जब भेदज्ञान द्वारा भिन्नता का ज्ञान हुआ तब ज्ञेय - ज्ञायक संकरदोष दूर हुआ । तब मैं तो एक अखण्ड ज्ञायक हूँ, ज्ञेय के साथ मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। ऐसा अन्दर में (स्वसंवेदन) ज्ञान हुआ। यह पहले प्रकार की स्तुति हुई । । ३१४ । । (श्री गुजराती प्रवचनरत्नाकर, भाग-२, पृष्ठ १३१ ) * प्रश्न : शास्त्र द्वारा मन से आत्मा को जाना हो, तो उसमें आत्मा जानने में आया या नहीं ? उत्तर : यह तो शब्द ज्ञान हुआ, आत्मा जानने में नहीं आया। आत्मा तो आत्मा से जाना जाता है। शुद्ध उपादान से हुए ज्ञान के साथ में आनन्द आता है; किन्तु अशुद्ध उपादान से हुए ज्ञान के साथ में आनन्द नहीं आता और आनन्द आये बिना आत्मा वास्तव में जानने में नहीं आता।।३१५ ।। ( ज्ञानगोष्ठी, (6 सम्यग्ज्ञान प्रश्न नं. २८८, आत्मधर्म अंक ४१९, जनवरी १९७८, पृष्ठ २४ ) 99 * प्रश्न : क्या इन्द्रियज्ञान आत्मज्ञान का कारण नहीं है ? उत्तर : ग्यारह अंग और नौ पूर्व की लब्धि होती है वह ज्ञान भी खण्ड–खण्ड ज्ञान है, आत्मा का ज्ञान नहीं है। आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञानमय है, इन्द्रियज्ञान वह आत्मा नहीं है। आँख से हजारों शास्त्र वांचे और कान से सुने वह सब इन्द्रियज्ञान है, आत्मज्ञान नहीं है। आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञान से जानने वाला है इन्द्रियज्ञान से जाने, वह आत्मा नहीं है। आत्मा को १३८ * मैं ज्ञायक ही हूँ और मुझे ज्ञायक ही जानने में आ रहा है* Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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