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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है रे! धर्म नहिं है ज्ञान, क्योंकि धर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु धर्म अन्य-जिनवर कहे।।३९८ ।। धर्म ( अर्थात् धर्मास्तिकाय) ज्ञान नहीं है क्योंकि धर्म कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है धर्म अन्य है-ऐसा जिनवर कहते हैं।।२४८।। (श्री समयसार जी गाथा ३९८) णाणमधम्मो ण हवदि जम्हाधम्मो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णमधम्मं जिणा बेंति।।३९९ ।। नहिं है अधर्म जु ज्ञान, क्योंकि अकर्म कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु अधर्म अन्य-जिनवर कहे।।३९९ ।। अधर्म (अर्थात् अधर्मास्तिकाय) ज्ञान नहीं है क्योंकि अधर्म कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है अधर्म अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२४९ ।। (श्री समयसार जी गाथा ३९९) कालो णाणं ण हवदि जम्हा कालो ण याणदे किंचि। तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कालं जिणा बेति।।४००।। रे! काल है नहिं ज्ञान , क्योंकि काल कुछ जाने नहीं। इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु काल अन्य-प्रभू कहे।।४००।। काल ज्ञान नहीं है क्योंकि काल कुछ जानता नहीं है, इसलिये ज्ञान अन्य है काल अन्य है-ऐसा जिनदेव कहते हैं।।२५० ।। (श्री समयसार जी गाथा ४००) १०८ * इन्द्रियज्ञान वैभाविक है Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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