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________________ ज्योतिर्मुख ५५ १६९ वस्तुओं को उठाने धरने में, मल-मूत्र का त्याग करने में, बैटने तथा चलने-फिरने में, और शयन करने से जो दयालु पुरुष सदा अप्रमादी रहता है, वह निश्चय ही अहिसक है । १७० १७१. इन पाँच स्थानो या कारणो से रिक्षा प्राप्त नही होती . १ अभिमान, २ क्रोध, ३ प्रसाद. ४. रोग ओर आलस्य । १४. शिक्षासूत्र अविनयी के ज्ञान आदि गुण नष्ट हो जाते है, यह उसकी विपत्ति है और विनयी को ज्ञान आदि गुणो की सम्प्राप्ति होती है, ( यह उसकी सम्पत्ति है । इन दोनो बातो को जाननेवाला ही ग्रहण और आसेवन रूप ) सच्ची शिक्षा प्राप्त करता है । १७२-१७३. इन आठ स्थितियो या कारणो से मनुष्य शिक्ष शील कहा जाता है १ हँसी-मजाक नहीं करना, २ सदा इन्द्रिय और मन का दमन करना, ३ किसीका रहस्योद्घाटन न करना, ४. अशील ( ( सर्वथा आचारविहीन ) न होना, ५ विशील ( दोषों से कलकित ) न होना, ६ अति रसलोलुप न होना, ७. अक्रोधी रहना तथा ८ सत्यरत होना । १७४ Jain Education International अध्ययन के द्वारा व्यक्ति को ज्ञान और चित्त की एकाग्रता प्राप्त होती है । वह स्वयं धर्म मे स्थित होता है और दूसरो को दी स्थिर करता है तथा अनेक प्रकार के श्रुत का अध्ययन करव श्रुतसमाधि में रत हो जाता है । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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