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________________ ज्योतिर्मुख ५३ १६२. 'धार्मिकों का जागना श्रेयस्कर है और अधार्मिकों का सोना श्रेयस्कर है -- ऐसा भगवान् महावीर ने वत्सदेश के राजा शतानीक की बहन जयन्ती से कहा था । १६३. आशुप्रज्ञ पंडित सोये हुए व्यक्तियों के बीच भी जागृत रहे । प्रमाद मे विश्वास न करे । मुहूर्त बडे घोर (निर्दयी ) होते है । शरीर दुर्बल है, इसलिए वह भारण्ड पक्षी की भाँति अप्रमत्त होकर विचरण करे । १६४. प्रमाद को कर्म (आस्रव) और अप्रमाद को अकर्म ( सवर ) कहा है । प्रमाद के होने से मनुष्य बाल ( अज्ञानी ) होता है । प्रमाद के न होने से मनुष्य पडित ( ज्ञानी ) होता है । १६५. ( अज्ञानी साधक कर्म-प्रवृत्ति के द्वारा कर्म का क्षय होना मानते है किन्तु ) वे कर्म के द्वारा कर्म का क्षय नही कर सकते । धीर पुरुष अकर्म ( संवर या निवृत्ति) के द्वारा कर्म का क्षय करते है । मेधावी पुरुष लोभ और मद से अतीत तथा सन्तोषी होकर पाप नही करते । १६६. प्रमत्त को सब ओर से भय होता है । अप्रमत्त को कोई भय नही होता । १६७. आलसी सुखी नही हो सकता, निद्रालु विद्याभ्यासी नही हो सकता, ममत्व रखनेवाला वैराग्यवान नही हो सकता, और हिसक दयालु नही हो सकता ! सतत जागृत रहो। जो जागता है उसकी बुद्धि बढती है । जो सोता है वह धन्य नही है, धन्य वह है, जो सदा जागता है । १६८. मनुष्यो ! Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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