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________________ ज्योतिर्मुख १०९. जिस प्रकार जल मे उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं होता, इसी प्रकार काम-भोग के वातावरण मे उत्पन्न हुआ जो मनुष्य उसमे लिप्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते है । ११०. जिसके मोह नही है, उसने दु ख का नाश कर दिया। जिसके तृष्णा नही है, उसने मोह का नाश कर दिया। जिसके लोभ नही है, उसने तप्णा का नाश कर दिया (और) जिसके पास कुछ नही है, उसने लोभ का (ही) नाश कर दिया । १११. जीव ही बल्म है। देहामक्ति से मक्त मुनि की ब्रह्मा (आत्मा) के लिए जो चर्या है, वही ब्रह्मचर्य है । ११२. स्त्रियो के सर्वाङ्गों को देखते हुए भी जो इनमे दुर्भाव नही करता---विकार को प्राप्त नहीं होता, वही वास्तव मे दुर्द्धर ब्र चर्यभाव को धारण करता है । ११३. जैसे लाख का घडा अग्नि से तप्त होने पर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, वैस ही स्त्री-महवास से अनगार (मुनि) नष्ट हो जाता है। ११४. जो मनुष्य इन स्त्री-विपयक आसक्तियो का पार पा जाता है, उसके लिए शेष सारी आसक्तियाँ वैसे ही सुतर (सुख से पार पाने योग्य) हो जाती है, जैसे महासागर का पार पानेवाले के लिए गंगा जैसी बड़ी नदी। ११५. जैसे शील-रक्षक पुरुपों के लिए स्त्रियाँ निन्दनीय है, वैसे ही शीलरक्षिका स्त्रियों के लिए पुरुप निन्दनीय है । (दोनों को एक-दूसरे से बचना चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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