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________________ पारिभाषिक शब्दकोश उपशान्त-कषाय-साधक की ग्यारहवी भूमि निमित्त से बन्ध को प्राप्त होनेवाला जिसमे कषायो का पूर्ण उपशमन हो कर्मजातीय सूक्ष्म पुद्गलस्कन्धरूप द्रव्य जाने से वह कुछ काल के लिए अत्यन्त कर्म जो ज्ञानावरण आदि आठ भेद रूप शान्त हो जाता है (५६०) है । कर्म के फलोदय वश होनेवाले उपशान्त-मोह-उपशान्त-कपाय गुणस्थान रागादि परिणाम भाव-कर्म है (सूत्र ६) का दूसरा नाम । कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभरूपी उपाध्याय-चतुर्थ परमेष्ठी (१), आगम- आत्मघातक विकार (१३५-१३६) ज्ञाता साधु (१०) कापोत-लेश्या-तीन अशुभ लेश्याओ में से ऊनोदरी-दे० अवमौदर्य तृतीय या जघन्य (५३४, ५४१) ऋजुसूत्र-नय-भूत-भविष्यत् से निरपेक्ष कामभोग-इन्द्रियो द्वारा भोग्य विषय (४९) केवल वर्तमान पर्याय को पूर्ण द्रव्य काय-अनेक प्रदेशो का प्रचय या समूह स्वीकार करनेवाली क्षणभगवादी दृष्टि जिससे युक्त द्रव्य कायवान् है (६५९)। (७०६-७०७) जीव के पृथिवी आदि पाँच स्थावर ऋषि-ऋद्धि-सिद्धि-सम्पन्न साधु (३३६) तथा एक त्रस ऐसे छ: जाति के शरीर एकत्व-अनुप्रेक्षा-वैराग्य-वृद्धि के लिए अपने काय कहलाते हे (६५०) कर्मो का फल भोगने में सर्व जीवों की कायक्लेश-ग्रीष्म-ऋतु मे गिरि-शिखर पर असहायता का चिन्तवन (५१५) उत्कट आसन लगाकर आतापन योग धारण करना, और इसी प्रकार शरदएकेन्द्रिय केवल स्पर्शन इन्द्रियधारी पृथिवी, ऋतु मे शीतयोग और वर्षाऋतु मे वर्षाजल, वायु, अग्नि व वनस्पति आदि जीव योग धारण करना, एक तप (४५२) (६५०) कायगुप्ति-काय-प्रवृत्ति का गोपन, सकोचन एवंभूत-नय-जिस शब्द का जिस क्रियावाला (४१४) व्युत्पत्ति-लभ्य अर्थ होता है, उसके कायोत्सर्ग-कुछ काल के लिए शरीर को द्वारा उस क्रियारूप परिणमित पदार्थ काष्ठवत समझ धैर्यपूर्वक उपसर्ग सहन को ही समझना। जैसे गमनार्थक 'गो' करने के रूप में किया जानेवाला शब्द के द्वारा चलती हुई गाय का ही आभ्यन्तर तप (४३४-४३५, ४८०) ग्रहण करना, न कि बैठी हुई का (७१२ काल-समयप्रमाण एकप्रदेशी अमूर्त तथा ७१३) निष्क्रिय द्रव्य, जो समस्त द्रव्यो के एषणा-समिति-भिक्षाचर्या विषयक विवेक परिणमन मे सामान्य हेतु है (६२५-- यतनाचार (४०४-४०९) ६२९, ६३७-६३९) करण-प्रवृत्ति के साधन वचन व काय कुल-जीवो की १९९३ लाख करोड़ (६०१) अथवा इन्द्रियाँ। जातियाँ (३६७) कर्म-मन वचन काय की शुभ या अशुभ कूटशाल्मली-नरको के अति पीड़ादायक प्रवृत्ति या व्यापार (६०१)। उसके कँटीले वृक्ष (१२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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