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________________ स्याद्वाद २२५ ६९८. (द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय के भेदरूप) मूल नय सात है--नैगम, सग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत। ६९९. इनमें से प्रथम तीन नय द्रव्याथिक है और शेष चार नय पर्या यार्थिक है । सातों मे से पहले चार नय अर्थप्रधान है और अन्तिम तीन नय शब्दप्रधान है। सामान्यज्ञान, विशेषज्ञान तथा उभयज्ञान रूप से जो अनेक मान लोक में प्रचलित है उन्हें जिसके द्वारा जाना जाता है वह नैगम नय है। इसीलिए उसे 'नयिकमान' अर्थात् विविधरूप से जानना कहा गया है। ७०१. (भूत, वर्तमान और भविष्य के भेद से नैगमनय तीन प्रकार का है।) जो द्रव्य या कार्य भूतकाल में समाप्त हो चुका हो उसका वर्तमानकाल मे आरोपण करना भूत नैगमनय है। जैसे हजारों वर्ष पूर्व हुए भगवान् महावीर के निर्वाण के लिए निर्वाणअमावस्या के दिन कहना कि 'आज वीर भगवान् का निर्वाण हुआ है।' ७०२. जिस कार्य को अभी प्रारम्भ ही किया है उसके बारे मे लोगो के पूछने पर 'पूरा हुआ कहना' जैसे भोजन बनाना प्रारम्भ करने पर ही यह कहना कि 'आज भात बनाया है' यह वर्तमान नैगमनय है। ७०३. जो कार्य भविष्य में होनेवाला है उसके निष्पन्न न होने पर भी निष्पन्न हुआ कहना भावी नैगमनय है । जैसे जो अभी गया नहीं है उसके लिए कहना कि 'वह गया' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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