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________________ स्याद्वाद २१५ ६६६. द्रव्य की अन्य (उत्तरवर्ती) पर्याय उत्पन्न (प्रकट) होती है और अन्य (पूर्ववर्ती ) पर्याय नष्ट (अदृश्य) हो जाती है । फिर भी द्रव्य न तो उत्पन्न होता है और न नष्ट होता है-- द्रव्य के रूप मे सदा ध्रुव (नित्य ) रहता है । ६६७. पुरुष मे पुरुष शब्द का व्यवहार जन्म से लेकर मरण तक होता है। परन्तु इसी बीच बचपन-बुढापा आदि अनेक पर्याय उत्पन्न हो-होकर नष्ट होती जाती है। ६६८. (अतः) वस्तुओं की जो सदृश पर्याय है-दीर्घकाल तक बनी रहनेवाली समान पर्याय है, वही सामान्य है और उनकी जो विसदृश पर्याय है वह विशेष है। ये दोनो सामान्य तथा विशेष पर्याय उस वस्तु से अभिन्न (कथचित् ) मानी गयी है । ६६९. सामान्य तथा विशेष इन दोनों धर्मो से युक्त द्रव्य मे होनेवाला विरोध-रहित ज्ञान ही. सम्यक्त्व का साधक होता है। उसमे विपरीत अर्थात् विरोधयुक्त ज्ञान साधक नहीं होता। ६७०. एक ही पुरुष मे पिता, पुत्र, पौत्र, भानेज, भाई आदि अनेक सम्बन्ध होते है। एक ही समय में वह अपने पिता का पुत्र और अपने पुत्र का पिता होता है। अत. एक का पिता होने से वह सबका पिता नही होता । (यही स्थिति सब वस्तुओं की है।) ६७१. निर्विकल्प तथा सविकल्प उभयरूप पुरुष को जो केवल निर्विकल्प अथवा सविकल्प (एक ही) कहता है, उसकी मति निश्चय ही शास्त्र में स्थिर नही है । ६७२. दूध और पानी की तरह अनेक विरोधी धमों द्वारा परस्पर घुले-मिले पदार्थ मे 'यह धर्म' और 'वह धर्म' का विभाग करना उचित नही है । जितनी विशेष पर्याय हों, उतना ही अविभाग समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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