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________________ मोक्ष - मार्ग १६९ ५३४. कृष्ण, नील और कापोत ये तीनो अधर्म या अशुभ लेश्याएँ है । इनके तारण जीव विविध दुर्गनियो मे उत्पन्न होता है । ५३५. पीत ( तेज ), पद्म और शुक्ल ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएँ है । इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है । ५३६. कृष्ण, नील और कापोत इन तीन अशुभ लेश्याओं में से प्रत्येक के तीव्रतम, तीव्रतर और तीव्र ये तीन भेद होते है । शेष तीन शुभ लेश्याओं में से प्रत्येक के मन्द, मन्दतर और मन्दतम ये तीन भेद होते है । तीव्र और मन्द की अपेक्षा से प्रत्येक मे अनन्त भाग - वृद्धि, असख्यात भाग- वृद्धि, संख्यात भाग- वृद्धि, सख्यात गुण - वृद्धि, असख्यात गुण-वृद्धि, अनन्त गुण- वृद्धि ये छह वृद्धियाँ और इन्ही नाम की छह हानियाँ सदैव होती रहती है। इसी कारण लेश्याओं के भेदो मे भी उत्तर-चढ़ाव होता रहता है । ५३७-५३८ छह पथिक थे । जंगल के बीच जाने पर वे भटक गये । भूख सताने लगी। कुछ देर बाद उन्हे फलों से लदा एक वृक्ष दिखाई दिया । उनकी फल खाने की इच्छा हुई । वे मन ही मन विचार करने लगे । एक ने सोचा कि पेड़ को जड़ मूल से काटकर इसके फल खाये जायें। दूसरे ने सोचा कि केवल स्कन्ध ही काटा जाय। तीसरे ने विचार किया कि शाखा ही तोड़ना ठीक रहेगा । चौथा सोचने लगा कि उपशाखा ( छोटी डाल ) ही तोड़ ली जाय । पाँचवाँ चाहता था कि फल ही तोड़े जायें । छठे ने सोचा कि वृक्ष से टपककर नीचे गिरे हुए पके फल ही चुनकर क्यों न खाये जायें। इन छहों पथिकों के विचार, वाणी तथा कर्म क्रमश. छहों लेश्याओं के उदाहरण हैं । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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