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________________ १४९ मोक्ष-मार्ग '४६६. गुरु नथा वृद्धजनो के समक्ष आने पर खडे होना, हाथ जोड़ना, उन्हे उच्च आसन देना, गुरुजनो की भावपूर्वक भवित तथा सेवा करना विनय तप है । का समय आने पर माके होगा, हम गोवा ४६७. दर्शनविनय, ज्ञानविनय, चारित्रविनय, तपविनय और औप चारिकविनय----ये विनय तप के पाँच भेद कहे गये है. जो पचमगति अर्थात् मोक्ष में ले जाते है । ४६८. एक के तिरस्कार में सबका तिरस्कार होता है और एक की पूजा मे मवकी पूजा होती है। (इसलिए जहाँ कही कोई पूज्य या वृद्धजन दिखाई दे, उनका विनय करना चाहिए।) ४६९ विनय जिनशासन का मूल है। सयम तथा तप से विनीत बनना चाहिए। जो विनय से रहित है, उसका कैसा धर्म और कैसा तप ? ४७०. विनय मोक्ष का द्वार है। विनय से संयम, तप तथा ज्ञान प्राप्त होता है। विनय से आचार्य तथा सर्वसघ की आराधना होती है। ४७१. विनयपूर्वक प्राप्त की गयी विद्या इस लोक तथा परलोक में फलदायिनी होती है और विनयविहीन विद्या फलप्रद नहीं होती, जैसे बिना जल के धान्य नही उपजता । ४७२. इसलिए सब प्रकार का प्रयत्न करके विनय को कभी नहीं छोडना चाहिए । अल्पश्रुत का अभ्यामी पुरुष भी विनय के द्वारा कर्मो का नाश करता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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