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________________ मोक्ष-मार्ग १२५ १८६ ये पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए है । और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ विपयो से निवृत्ति के लिए है। ३८७ जैसे गप्ति का पालन करनेवाले को अनचित गमनागमनमूलक दोप नहीं लगते, वैसे ही समिति का पालन करनेवाले को भी नही लगते। इसका कारण यह है कि मनि जव मनोगप्ति आदि म स्थित होता है तब वह अगुप्तिमूलक प्रमाद को रोकता है, जो दोपो का कारण है। जब वह समिति में स्थित होता है, तव चेप्टा करते समय होनेवाले प्रमाद को रोकता है। ३८८ जीव मरे या जीये, अयतन'चारी को हिमा का दोष अवश्य लगता है। किन्तु जो ममितियो मे प्रयत्नशील है उसमे बा हा हिसा हो जाने पर भी उसे कर्मबन्ध नहीं होता। ३८९-३९०. (इसका कारण यह है कि) समिति का पालन करते हए साधु से जो आकस्मिक हिसा हो जाती है, वह केवल द्रव्य-हिसा है, भावहिसा नही। भावहिसा तो असयमी या अयतनाचारी से होती है--ये जिन जीवों को कभी मारते नही, उनकी हिसा का दोष भी इन्हें लगता है। किसी प्राणी का घात हो जाने पर जैसे अयतनाचारी सयत या असयत व्यक्ति को द्रव्य तथा भाव दोनो प्रकार की हिसा का दोष लगता है, वैसे ही चित्त-शुद्धि से युक्त समितिपरायण साधु द्वारा (मन पूर्वक) किसीका घात न होने के कारण उसके द्रव्य तथा भाव दोनों प्रकार की अहिमा होती है । ३९१-३९२ ईर्या-समितिपूर्वक चलनेवाले साधु के पैर के नीचे अचानक कोई छोटा-सा जीव आ जावे और कुचलकर मर जाये तो आगम कहता है कि इससे साधु को सूक्ष्म मात्र भी बन्ध नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.008027
Book TitleSaman suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri, Nathmalmuni
PublisherSarva Seva Sangh Prakashan
Publication Year1989
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size14 MB
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