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________________ एक 'कर' नो ) का+सी-कासी 'का' थयो का ही-काही त्यारे काही काही . आर्ष प्राकृतमां वपरायेलां बीजां केटलांक अनियमित कर-अकरिस्सं (अकार्षम् ) १ पु० कर-का-अकासी (अकार्षीत् ) ३ पु० बू-अब्बवी (अब्रवीत् ) वच्-अवोच (अवोचत्) अस्-आसी (आसीत् ) बू-आह (आह) , आहु (आहु) " बहु० दृश-अदक्खु ( अद्राक्षुः) भू अभू (अभूत् के अभुवन्) , एक, उक्त आर्षरूपो, संस्कृत अने प्राकृत एम बे भिन्न भिन्न भाषाना अस्तित्वनो स्पष्ट रीते निषेध करे छे. ए बधां रूपो मात्र उच्चारणमेदना नमूना छे. नरजाति भारिय (आर्य) आर्य-सज्जन ! सानो णायसुता (ज्ञातमुत७२) ज्ञातवंशनो! णायसुया पुत्र-महावीर मिलिच्छ (म्लेच्छ) म्लेच्छ छगलय (छाग) छालू-बकरुं ऊसव (उत्सव) उत्सव नातपुत्त) (ज्ञातपुत्र) ज्ञातवंशनो णातपुत्त पुत्र-महावीर नायपुत्त) ___ ७२ शब्दनी आदिना 'ज्ञ' नो 'न' के 'ण' थाय छे अने शब्दनी भंदरना 'ज्ञ नो 'न' के 'पण' थाय छे:-ज्ञातसुत=णायसुत, नायसुत. जातपुत्र-णायपुत्त, नातपुत्त. विज्ञान विष्णाण, विधाण. संज्ञा-संना, संणा..
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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