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________________ २६ अप अनु। परा-सामुं, उलटुं. परा+जिणइ पराजिणइ-पराजय करे छे. पराहोइ-पराहोइ-पराभव करे छे-हरावे छे. ओ) (अप) हलकुं, रहित, ओ+सर ओसरइ) सरके छेअव नीचे, दूर. अव+सरह-अवसरइ खसे छे. ___ अप+सरह-अपसरह) अप+अर्थकम् अवत्थयं-अपार्थक-अमथु. ओ+माल्यम् ओमल्लं-निर्माल्य. सं (सम्) एकलु, साथे. सं+गच्छति-संगच्छति-साथे जाय छे. ___ सं+चिणइ-संचिणइ-संचय करे छे-एकहुं करे छे. अणु ] (अनु) पाछळ, सर. अणु+जाइ-अणुजाइ-पाछळ जाय छे. अणु+करइ=अणुकरइ-अनुकरण करे छे. ओ। (अव) नीचे ओ+तरह-ओतरइ, अवतरे छे, ऊतरे छे. ___अव+तरह-अवतरह नीचे जाय छे. निर् ) (निर्) निरंतर, सतत. रहित. निर्+इक्खइ-निरिक्खइ-नीरखे छे-निरीक्षण - करे छे. नी ) नि+ज्झरइ-निज्झरइ-झर्या करे छे. नी+सरइ-नीसरह-नीसरे छे-निरंतर सरे छे. निर्+अंतरं-निरंतरं-निरंतर-सतत. निर+धनः-निद्धणो-निधनियो-धन वगरनो दु। (दुर ) दुष्टता दु+गच्छइ-दुग्गच्छइ-दुर्गतिए जाय छे. दो+गञ्च-दोगच्चं-दौर्गत्य-दुर्गति. दूहवो-दूहवो-दुर्भग-कमनसीब. २७ 'दू' अने 'सू' नो उपयोग फक्त 'हव'-भग) शब्दनी पूर्वे थाय छे.
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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