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________________ १ पुरुष २ " " पाठ १ लो वर्तमानकाळ एकवचनना प्रत्ययो मि सि, से ,, ति, इ ( ते, धातु ' (मि') (सि, से) ((ति) ((ते) १ आ आखा पुस्तकमां ( ) आवा गोळ चिह्नमां मूकेलां प्रत्ययो, धातुओ के नामो वा तेमनां रूपो संस्कृत भाषानां समझवां सरखामणीनी अने उच्चारणना भेदनी समझण माटे ए बधां अहीं जणावेलां छे. २ संस्कृतमां धातु एटले मूळ धातु अर्थात् जेने गणसूचक विकरण नथी लागेलो एवो शुद्ध धातु समझाय छे त्यारे प्राकृतमां ते करतां प्रायः ऊलटी स्थिति के एटले के संस्कृतमां गणमेदने लीधे धातुओने जुदा जुदा विकरण प्रत्ययो लागे छे त्यारे ते जुदा जुदा विकरणो जेमने लागेला छे तेवा ज घणा धातुओ प्राकृतमां भूळ धातुनुं स्थान ले छे. तात्पर्य ए छे के अमुक अमुक गणने सूचवनारा ते जुदा जुदा विकरणो प्राकृतर्मा धातुना अंगरूप बनी धातुमां मळी गया छे अने आम छे माटें ज प्राकृतमां कोह प्रकारनो गणभेद नथी रह्यो.
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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