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________________ १९० छ (षट् ) छ सत्त ( सप्तन् ) सात अट्ठ ( अष्टन् ) आठ नव ( नवन् ) नव चउहस) चउद्दह (चतुर्दश) चौद चोद्दस चोद्दह ) दस (दशन ) दश दह ( शन् ) दश एआरह) एगारह (एकादश) अगीयार इआरस) दुवालस) बारह (द्वादश) बार बारस ) तेरस (त्रयोदश) तेर पण्णरह (पञ्चदश) पार पण्णरस र सोलस । (षट्+दश-षोडश) सोलह सोळ सत्तरस । (सप्तदश) सत्तर सत्तरह अट्ठारस । (अष्टादश) अढार अट्ठारह । कइ ( कति ) प० बी० } कई (कति ) च० छ० } कइण्ह, कइण्हं (कतीनाम् ) बाकी बधां 'रिलि'नां बहुवचनी रूपो जेवां जाणवां. नीचे जणाधेला शब्दोमां जेओ आकारांत छे तेमनां रूपो 'वाया' नी जेवा जाणवानां छे अने जे शब्दो इकारांत छे तेमनां रूपो 'गति'नी जेवां समझवानां छे. एगूणवीसा ( एकोनविंशति) । बावीसा (द्वाविंशति) बावीश ओगणीश तेवीसा (त्रयोविंशति)तेवीश-त्रेवीच वीसा (विंशति) वीश चउवीसा) (चतुर्विंशति) चोवीस एगवीसा) (एकविंशति) चोवीसा । एकवीश पणवीसा (पञ्चविंशति) पच्चीशएकवीसा) पचवीश इवधीसा
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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