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________________ 'धातुनां छ अंगो बने छे अने ए अंगोथी भविष्यकाळना प्रत्ययो लागे छे. छ अंगोनी समझःविकरण विना विकरण वाळु १ हो २ हो पाअ ने ज अने जावार्छ ज अने जावाळु विकरणविनानुं विकरणवाळु ३ होज, ४ होजा ५ होएज ६ होएजा पाज, पाजा पाएज पाएजा नेज, नेजा नेएज, नेएजा वगेरे रूपाख्यान [ उदाहरण] १ पु० होस्सं, होइस्सं, होजिस्सं, होजास्स होएजिस्सं होएस्सं, होजेस्सं, होजस्सं होएजेस्सं होएज्जासं, होएजस्सं आ प्रमाणे सर्व धातुनां उक्त छ अंगो बनावी उपर्युक रीते सर्व पुरुषनां रूपाख्यानो समझी लेवां. केटलांक अनियमित रूपाख्यानो कर्-भविष्यकाळमां 'कर' ने बदले 'का' पण वपराय छे अने तेनां बधां रूपो स्वरांत धातुनी सरखां थाय छे तथा प्रथम पुरुषना एकवचनमा ‘काहं' रूप वधारे थाय छे. जेमके; ३ पु० काहिइ. २ पु० काहिसि. १ पु० काहिमि, काहं वगेरे दा-दा' धातुनां भविष्यकाळ संबंधी बधां रूपो स्वरांत धातुनी सरखां थाय छे. फक्त प्रथम पुरुषना एकवचनर्मा
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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