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________________ चतुरझोय-सूत्र (६१) संसार में परिभ्रमण करते-करते जब कभी बहुत काल में पार-कमों का वेग क्षीण होता है और उसके फलस्वरूप अन्तरात्मा क्रमशः शुद्धि को प्राप्त करता है, तब वहीं मनुष्य-जन्म मिलता है। मनुष्य-शरीर पा लेने पर भी सद्धर्मका श्रवण दुर्लभ हैं, जिसे सुनकर मनुष्य. तप, क्षमा और अहिंसा को स्वीकार करते हैं। (६३) सौभाग्य से यदि कभी धर्म का श्रवण हो भी जाय, तो उस पर श्रद्धा का होना अत्यन्त दुर्लभ है । कारण कि बहुत-से लोग न्याय-मार्ग को - सत्य-सिद्धान्त. को-सुनकर भी उससे दूर रहते हैं-उसपर विश्वास नहीं रखते। (६४) सद्धर्म का श्रवण और उसपर श्रद्धा-दोनों प्राप्त कर लेने पर भी उनके अनुसार पुरुषार्थ करना तो और भी कठिन है। क्योंकि संसार में बहुल-से लोग ऐसे हैं, जो सद्धर्म पर दृढ़ विश्वास रखने हुए भी उसे प्राधरण में नहीं बात !
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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