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________________ विनय-सूत्र (७३-७४) इन कारणों से मनुष्य शिक्षा-शोल कहलाता है : ૪ हर समय हँसनेवाला न हो, सतत इंद्रिय निग्रहो हो, दूसरों को मर्मभेदी वचन न बोलता हो, सुशील हो, दुराचारी न हो, रसलोलुन न हो, सत्य में रत हो, क्रोधी न हो-शान्त हो । ( ७५) जो गुरु को श्राज्ञा पालता है, उनके पास रहता है, उनके इति तथा कारों को जानता है, वही शिष्य विनीत कहलाता हैं । ( ७६-७६ ) इन पन्द्रह कारणो से वुद्धिमान मनुष्य सुविनीत कहलाता है : उद्धत न हो- नम्र हो, चपल न हो स्थिर हो, मायाची न हो-सरल हो, कुतूनो न हो-गम्भीर हो, किमी का तिरस्कार न करता हो, क्रोध को अधिक समय तक न रखना हो--शोध हो ग्रान्त हो जाता हो, अरने से मित्रता का व्यवहार रखनेवालों के प्रति पूरा सद्भाव रखता हो, शास्त्रोंके अध्ययन का गर्व न करता हो, किसी के दोषों का भण्डाफोड़ न करता हो, मित्रों पर क्रोधित न होता हो, प्रिय मित्र की भी पीठ पीछे भनाई हो करता हो, किसी प्रकार का भगदा-फसाद न करता हो, बुद्धिमान हो, अभिजात अर्थात् कुजीम हो, सज्जाशील हो, एकाम हो ।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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