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________________ लोकतत्त्व-सूत्र १३१ ( २३५ ) तप दो प्रकार का बतलाया गया है— बाह्य और श्रभ्यतर | बाह्य तप छह प्रकार का कहा है, इसी प्रकार अभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का है । ( २३६ ) अनशन, ऊनं दरी, भिन्नाचरी, रमपरित्याग, काय क्लेश र सलेना ये बाह्य तप हैं । ( २३७ ) प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग ये अभ्यन्तर तप हैं । (२३८) कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल ये लेश्यात्रा के क्रमश: छह नाम हैं । ( २३६ ) कृष्ण, नील, कापोत ये तीन ग्रधर्म - लेश्याए हैं। इन तीना से युक्त जीव दुर्गति में उत्पन्न होना है । ( २४० ) तेज, पद्म और शुक्ल ये तीन धर्म - लेश्याए हैं। इन ते . से युक्त जीव सद्गति में उत्पन्न होता है ।
SR No.007831
Book TitleMahaveer Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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