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________________ १०६ नयामृतम्-२ [९] हिवे बंधद्वार। नेगमने मते करम आश्रवद्वारें आया ते प्रदेश जीवनाथी सनमुख थया। संग्रहनयनें मतें प्रदेशांथी बंधाणा। व्यवहारने मते पुरांणा कर्माथी एकमेक थया। ऋजुनें मते जीवना प्रदेश बंधाणा। शब्दनय मतें सिद्धांते रागबंध द्वेषबंध कह्यौ जीवना भाव रागद्वेष अज्ञान में थया। समभिरूढने मते जीव आर्तरौद्रध्याने रह्यौ। एवंभूतने मते किणही जीवनै नखसिख लांबां वध्यो दुःखी थाय तिम जीव दुखी थयो बंधभाव भोगवतां। [१०] हिवें मोखतत्त्व। नैगमनें मतें कर्मारी थिति पूर्ण थई अनादि बंधी थी तें। संग्रहनयनें मतें करम दूर थया। व्यवहारने मते शुक्लध्यांननी क्रिया थई। ऋजुने मते हंसना अंस कहतां प्रदेश उजला थया। शब्दनयनें मते आठ गुण प्रगट्या केवलज्ञान केवलदरसण आदि। समभिरूढने मतें गुणांमें रयण थयो। एवंभूतने मते अनंत आनंद ऊपनो, सुख ते कारण सुखीपणौ ते कारज सुखगुणप्रवृत्ति ते क्रिया इति नवतत्त्व। [११] पहिलो जीवतत्त्व कयो। तेहना चवदें भेद किया। ते उपर तो संखनी परे नय लागे छ। तथा च्यार गति ८४लाख जीवा उपर ए रीते संभवे। अनुयोगद्वारमतें तो उहांतो तीन विकल्प कर्या अरु तीनांथी समझ न पडै तो सात नय कर दीखाया। कोई जीव आगलें भवे नारकीमें ऊपजसि मनुष्यथी ते उपर लगाडै छै। नैगमनयनें मते तो मनुष्यपणै छै अने आगला नेरियाना भवनौ आउखो न बांध्यो तेहा नेरीयो कहै। मनुष्यने पेहला तिर्यंचनो भव थो तेहथी मनुष्यपणामें आवें तरे छ बोल पहला बांध नीकलै ए भणे ती सूत्रनी साख गइनामे जाइनामे हइनामे खइनामे अवगाहनानामे सरनामे। (समवायांग ८२.६) तेहमें खइनामे कहतां आगलें भवै क्षेत्रफरसना योग परवरती बिध लेश्यादिक बंध होय तेह परमाणे भोगवै तेहथी नेगम तो तठाथी नेरियो कहे। अरु संग्रह तो वाटै वहतो तथा अपर्याप्ता मनुष्य थया नेरीयो कहै। अरु व्यवहारतौ पर्याप्तौ हुवां कुमारगेपरवर(?) तांने नेरियो कहै। अरु ऋजु तो नारकीनो आऊखो बांध्या पछे नेरीयो कहै। ते कारण ऋजु कारणरूप अने शब्द कार्यरूप नेरियापणानो भोगववो। शब्दनयनें मते अपर्याप्तानें नेरियो कहे। समभिरूढनयनें मतें नारकीना भावमें प्रवर्ततो क्षेत्र वेदना सहै। एवंभूतनें मतें परमाधामी मार दै दुःख भोगवें उत्कष्टा तरें नेरीयो कहें। एवंभूतनें मते अस्त्रीने माथे जलधरण किरिया करतो एकही पर्याय छै-छीन हुवे तिवारें घट कहें ए न्याय जाणवो। अरु एकली जीव उपरि ओर रीते लागे। [१२] अरु अजीव उपर सात नय ते धर्मास्तिकाय ऊपरें सात नय। नैगमनें मतें तो खंद, देश, प्रदेश तीन भेद अभेद रुकर धर्मास्तिकाय द्रव्य मांगे। संग्रहनय एक द्रव्यरू एक सत्ता कर माने। व्यवहारनय असंख्यात प्रदेशरूपा एक परदेश विषे षट्गुणी हांणवृद्धिरूप माने। ऋजनें मते जीव पुद्गल वर्तमानकाले चलावें ते माने। अरु शब्दादिक तीन नय तो आत्माना उपयोगनें ही ज धर्मास्तिकाय कहै। पाथाने दृष्टांते पथागारसपथो। ते तीन नयना तीन विकल्प। शब्दनयनें मते ज्ञाननो उपयोग कारण। एवंभूतनै मते जाणपणो कारज। समभिरूढने मते ज्ञानगुणप्रवत्ति क्रिया थई। ए रीते पिण अधर्मास्तिकाय जाणवी। __[१३] हिवें आकाशास्तिकाय उपरि सात नय। नैगमादि सात नय मध्ये जीव कर्मनो कर्ता किसें नय करी?(१), अ जीवकर्मनो भोगता किसें नय करी?(२) जीव स्वरूपनौ कर्ता किसी नय करी?(३) जीव स्वरूपनो भोक्ता किसी १. पत्थयाहिगारजाणगो पत्थओ(अनुयोगद्वासूत्र-४७४)
SR No.007790
Book TitleNayamrutam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size5 MB
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