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________________ भासगाहा-४६९३-४७०४] तइओ उद्देसो ६७३ अस्सन्नी उवसमितो, अप्पणों इच्छाइ अण्णहिं तस्स । दट्ठणं च परिणए, उवसामिते जस्स वा खित्तं ॥४७००॥ "असन्नी०" गाहा । एगेणं असन्नी ओवसामिओ । एक्कग्गामे त्ति तं खेत्तं अन्नस्स जाव सो सम्मत्तं न गेण्हइ ताव सो जइ पव्वयइ खेत्तियस्स, अह गहिए सम्मत्ते पव्वयइ तो अप्पणो इच्छाए जस्स इच्छइ तस्स सो अन्नहिं तस्स त्ति खेत्तपहियाइ जइ उवसामइ दटुं वा उवसमइ उवसामंतस्स अह खेत्तं तो दट्ठणं उवसंतो खेत्तियस्स सो जं दट्ठणं उवसंतो सो न लब्भइ । एतदेवार्थम् - परखित्ते वसमाणो, अइक्कमंतो व ण लभति असम्णि । छंदेण पुव्वसर्पिण, गाहितसम्माति सो लभति ॥४७०१॥ "परक्खित्ते वसमाणो०" गाहा । कण्ठ्या । “गहिए समं सो लभइ" त्ति स एव अतिकम्मंतो लभति, ण तु जस्स खेत्तं । एगग्गामो त्ति गयं । इदाणिं अइच्छित्ते त्ति दारं मग्गंतो अन्नखित्ते, अभिधारंतो उ भावतो तस्स । खित्तम्मि खित्तियस्सा, बाहिं वा परिणतो तस्स ॥४७०२॥ "मग्गंतो०" गाहा । अस्य व्याख्या अभिधारिंतो वच्चति, पुच्छित्ता साह वच्चतो तस्स । परिसागतो व कहइ, कड्डणहेउं न तं लभति ॥४७०३॥ उज्जुकहए परिणतं, अंतो खित्तस्स खित्तिओ लभइ । खित्तवहि तु परिणयं, लभतुज्जु कही ण खलु मादी ॥४७०४॥ "अभिधारितो०" ["उज्जुकहए०"] गाहाद्वयम् । एगो मग्गंतो वच्चइ कंचि आयरियं । तस्स कोइ साहू पंथे मिलिओ, सो तेण पुच्छिओ - अमुओ कहिं आयरियो ? साहुणा भण्णइ - किं तेणं? भणइ - तस्स सगासे पव्वइउकामो अहं । ताहे सो कड्ढणहेउं धम्म कहेइ । अहवा परिसामज्झे धम्मं कहंतस्स ढुक्को वंदिओ य । सो जाणेत्ता कड्डणहेउं कहेइ । जइ तस्स परिणमइ पव्वयावेइ य न लब्भइ, जं अभिधारेंतो वच्चइ तस्स सो। पच्छद्धस्स व्याख्या । द्वितीयगाहा । अह सो कड्डणहेउं कहेइ सो य परिणओ जस्स खेत्तं तस्स सो । अहवा बाहिं खेत्तस्स उज्जू कहेंतस्स परिणओ कहओ लब्भइ । अह कड्डणाहेउं कहेइ जस्स अभिधारेंतो
SR No.007787
Book TitleKappasuttam Vhas Vises Chunni Sahiyam Part 02
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Sanghdasgani Kshamashraman
Author
PublisherShubhabhilasha Trust
Publication Year2016
Total Pages423
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size4 MB
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