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________________ www.vitragvani.com (v) में अपने स्वरूप का स्वाधीन उपयोगमय आनन्द भरपूर अस्तित्व स्पष्ट वेदन में आता है। इसलिए सम्यक्त्वमय जीवन परम सुखमय है। ऐसा सुन्दर निज वैभव सम्पन्न सुखी जीवन प्राप्त करने के लिए, हे मुमुक्षु जीवों! श्री गुरुओं द्वारा बताये हुए आत्मा के परम महिमावन्त स्वरूप को लक्ष्यगत करो, बारम्बार गहरी भावना से उसका चिन्तन करके, आत्मरस चखकर सम्यग्दर्शन प्राप्त करो - यही मुमुक्षु जीवन की सच्ची शोभा है । (इस पुस्तक में अन्त में दिये गये सम्यक्त्व जीवन सम्बन्धी आठ लेख आपको ऐसे सुन्दर जीवन की प्रेरणा प्रदान करेंगे ।) चैत्र शुक्ला त्रयोदशी वीर संवत् २५०१ जिज्ञासु जीवों को सम्यग्दर्शन की अपार - अपार महिमा ख्याल में आवे, उसकी आवश्यकता समझकर उसकी प्राप्ति की आकांक्षा जागृत हो और उसकी प्राप्ति का स्पष्टमार्ग समझकर सम्यक्त्व को प्राप्त करे ऐसी मंगल भावनापूर्वक यह सम्यग्दर्शन पुस्तक इस जगत में सम्यक्त्वमार्ग को सदा प्रकाशित करती रहे... और साधर्मीजन शीघ्र इस मार्ग में आयें, यही भावना ! जय महावीर ब्रह्मचारी हरिलाल जैन सोनगढ़ Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007773
Book TitleSamyag Darshan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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