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सम्यग्दर्शन : भाग-6]
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केवली भगवान की क्षायिकी क्रिया.
सर्वज्ञ का निर्णय करनेवाला ज्ञान भी उदय से भिन्न पड़कर क्षायिकभाव की ओर परिणमित होने लगा
अहो, सर्वज्ञ तीर्थङ्करदेव ! आपकी दिव्यता वास्तव में आश्चर्यकारी है... कर्म का उदय भी आपको मोक्ष का कारण होता है, बन्ध का कारण नहीं होता । आपके केवलज्ञान के किसी अचिन्त्य प्रभाव के कारण, उदय की क्रियायें भी आपको तो मोक्ष का ही कार्य कर रही हैं, क्योंकि उदय के काल में आपको कर्म का बन्धन किञ्चित् भी नहीं होता, अपितु कर्म का क्षय ही होता जाता है; इसलिए वे उदय क्रियायें भी आपके लिये तो क्षायिकी क्रिया ही है ।
- तो हे भगवान! आपके अचिन्त्य केवलज्ञान का स्वीकार करनेवाला हमारा सम्यग्ज्ञान, वह भी मोह का क्षय करतेकरते मोक्ष की ओर जाये- इसमें क्या आश्चर्य है ? प्रभो ! मोक्ष के मार्ग में चढ़े हुए हमारे जैसे साधक ही आपकी क्रियाओं को क्षायिकी क्रियारूप से स्वीकार कर सकते हैं। हे सर्वज्ञदेव ! उदय के समय भी आपको क्षायिकभावों से जिसने पहिचान लिया, उसका ज्ञान, उदयभावों से भिन्न `पड़कर क्षायिकभाव की ओर गतिशील हुआ।
(- प्रवचनसार, गाथा 43
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