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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [279 दिखायी दे, उतना माना जाये। यह मान्यता भी उचित नहीं है कि आँखों से दिखायी देने पर ही किसी वस्तु को माना जाता है। वस्तु आँखों से भले ही दिखायी न दे, किन्तु ज्ञान में तो ज्ञात होती ही है। एक पृथक् रजकण (परमाणु) आँखों से दिखायी नहीं दे सकता, किन्तु ज्ञान के द्वारा उसका निश्चय किया जा सकता है। जैसे पानी, ऑक्सीजन और हाईड्रोजन के मिश्रण से बनता है; किन्तु ऑक्सीजन, हाईड्रोजन और उसमें पानी की शक्ति आँखों से दिखायी नहीं देती, तथापि वह ज्ञान के द्वारा जाना जा सकता है। इसी प्रकार अनेक परमाणु एकत्रित होकर सोना, लकड़ी, कागज इत्यादि दृश्यमान स्थूल पदार्थों के रूप में हुए हैं, जिनमें परमाणु का अस्तित्व निश्चित हो सकता है। जितने भी स्थूल पदार्थ दिखायी देते हैं, वे सब परमाणु की जाति के (अचेतन वर्णादि युक्त) ज्ञात होते हैं, उसका अन्तिम अंश परम अणु है। इससे निश्चित हुआ कि आँख से दिखायी न देने पर भी परमाणु का नित्य अस्तित्व ज्ञान में प्रतीत होता है। यदि ऐसा कहा कहा जाए कि हम तो उतना ही मानते हैं, जितना आँखों से दिखायी देता है, अन्य कुछ नहीं मानते, तो हम इसके समाधानार्थ यह पूछते हैं कि क्या किसी ने अपने सात पीढी पहले के पिता को अपनी आँखों से देखा है? आँखों से न देखने पर भी सात पीढ़ी पूर्व पिता था, यह मानता है या नहीं? वर्तमान में स्वयं है और अपना पिता भी है; इसलिए सात पीढ़ी पूर्व का पिता भी था - ऐसा आँखों से दिखायी न देने पर भी नि:शङ्कतया निश्चय करता है, उसमें ऐसी शङ्का नहीं करता कि 'मैंने अपने सात पीढ़ी पूर्व के पिता को आँखों से नहीं देखा; इसलिए वे होंगे या नहीं?' Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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